चित्तौड़गढ़ शहर में हो रहा प्राकृतिक नदी नालों पर खुलें आम अतिक्रमण, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी उड़ रही खुलें आम धज्जियां।
चित्तौड़गढ़ में लगता है भूमाफियाओं के साथ साथ मिलीभगत करने में प्रशासन जागा हुआ है लेकिन चित्तौड़गढ़ की जनता है जो भ्रष्टाचार के इस खेल का मूक दर्शक तमाशा देखने के बाद भी सो रही है।
चित्तौड़गढ़ शहर में हो रहा प्राकृतिक नदी नालों पर खुलें आम अतिक्रमण, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी उड़ रही खुलें आम धज्जियां।
चित्तौड़गढ़, 9 जनवरी।
चित्तौड़गढ़ में लगता है भूमाफियाओं के साथ साथ मिलीभगत करने में प्रशासन जागा हुआ है लेकिन चित्तौड़गढ़ की जनता है जो भ्रष्टाचार के इस खेल का मूक दर्शक तमाशा देखने के बाद भी सो रही है।
बता दें कि चित्तौड़गढ़ शहर के नजदीक डाइट रोड जंजरिया तालाब से निकलने वाला 40 से 50 फुट चौड़ाई में नाला जो कि पुलिस लाइन के पीछे से होता हुआ नदी में गिरता है उस नाले को प्रशासन की सांठगांठ से 4 फीट में तब्दील कर दिया गया है फलस्वरूप अब जब भी बारिश के समय में नदी का वाटर लेवल बाहर निकलेगा तो वह पानी कितनी ही तबाही मचाएगा और उससे कितनी जनहानि होगी तब तो प्रशासन भी स्थिति ना सम्भाल पाएगा फिर होगी थोथी जांच प्रक्रिया और मामला किसी फाइल में दबकर रह जाएगा।
विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि यह अतिक्रमण होमगार्ड ऑफिस से आने वाले रास्ते के कालिका ज्ञान केंद्र की ओर जाने वाले रास्ते पर एक उद्योगपति की बेशकीमती जमीन को फायदा मात्र पहुंचाने के लिए किया गया है।
चित्तौड़गढ़ शहर के नजदीक ही ठेका कम्पनी द्वारा अतिक्रमण किया गया यह नाला एक प्राइवेट ठेका फर्म द्वारा बनाया जा रहा है यह नाला धनेत गांव की ओर जाने वाले रास्ते पर होमगार्ड ऑफिस की जमीन में होता हुआ नदी की ओर जा रहा है। सड़क की जमीन की सीमा के पास गुजरने वाले इस बरसाती नाले को बिल्कुल ही पुलिस लाइन की दीवार के पास होते हुए बनाया जा रहा है।
उसी पुलिस लाइन बाउंड्री से होते हुए 10 फीट का सरकारी रास्ते को भी इसी निजी फर्म ने कब्जा करके रोड ब्लॉक कर दिया है और अपना निजी रास्ता बता कर बंद कर दिया है पर प्रशासन आंखें बंद करके चीर निद्रा में सो रहा है। जबकि ठेका कम्पनी के ठेकाकर्मी से बात करने पर उसने बताया कि नगर परिषद् से ठेका होने के बाद रोड़ का निर्माण किया जा रहा है लेकिन नाले की सीमा जानकारी की बात करने पर उससे मिलने वाला जवाब असंतोषजनक रहा।
दूसरी तरफ चित्तौड़गढ़ शहर के बीचों बीच महाराणा प्रताप सेतु मार्ग यानी कि नई पुलिया पर जो रेलवे कॉलोनी से नाला निकल रहा था उसी नाले की उतनी ही चौड़ाई और लंबाई है जो कि रेलवे कॉलोनी की तरफ से आ रहा है और रोडवेज बस स्टैंड के पीछे की तरफ नदी में मिलता है इस नाले की चौड़ाई भी प्राकृतिक अवस्था में कभी 30 से 40 फीट के बीच हुआ करती थी जिसको कांग्रेस सरकार ने ही 10 से 12 फीट चौड़ाई और 10 से 12 फीट गहराई में बनाया था और आज इसी कांग्रेस सरकार में वही नाला जो कि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है।
बता दें कि वर्ष 2016 में चित्तौड़गढ़ शहर में जो पानी ने तबाही मचाई थी उसका सही से जायजा नहीं लिया गया क्योंकि जनता तो मूक दर्शक बन सो रही है प्रशासन जाग कर भी चीर निद्रा में सो रहा है लेकिन भूमाफियाओं के साथ मिलकर प्रशासन खुब मज़े ले रहा है आखिर उनके ही नाक के नीचे होने वाला अतिक्रमण उनकी मौन स्वीकृति के बीना कैसे सम्भव है।
आपको जानकारी के लिए यह भी दें कि सुप्रीम कोर्ट से प्राप्त राज्य सरकारों को मिलें निर्देशों के अनुसार प्राकृतिक नदी नालों के आकार को किसी भी सुरत में अन्य प्रयोजनों के उपयोग के लिए उसका रूपांतरण या किसी भी प्रकार से स्वरूप में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है, लेकिन इन सब की अनदेखी कर चित्तौड़गढ़ शहर की अधिकतर काॅलोनियां नदी और नालों को अतिक्रमण करके ही बनाई गई है जिसमें से एक अतिक्रमण को तो प्रकृति ने इसी साल बारिश में महाराणा प्रताप सेतूं मार्ग पर बनी एक निजी होटल की दीवार को अपने पानी के तेज बहाव से ढ़हा कर सुप्रीम कोर्ट की पालना में नदी को अतिक्रमण मुक्त करने की पहल कर ही दी थी लेकिन इसकी खबर सुर्खियों से प्रकाशित होने के बाद से आज तक भी चित्तौड़गढ़ का प्रशासन पहले की भांति ही चिर निद्रा में फिर से सो चुका है।
क्या यह प्रशासन किसी बड़ी जनहानि का इंतजार कर रहा है या फिर इन सब में भूमाफियाओं के साथ सत्ता धारी नेताओं की मिला भगति है आखिर क्यों प्रशासन मौन है? जनता मांग रही है जबाव।