हिन्दवी स्वराज के सूबेदार तानाजी मालुसरे बलिदान दिवस*
तानाजी का जन्म 17वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के कोंकण प्रान्त में महाड के पास 'उमरथ' में हुआ था। वे बचपन से छत्रपति शिवाजी के साथी थे। ताना और शिवा एक-दूसरे को बहुत अछी तरह से जानते थे। तानाजीराव, शिवाजी के साथ हर लड़ाई में शामिल होते थे। ऐसे ही एक बार शिवाजी महाराज की माताजी लाल महल से कोंडाना किले की ओर देख रहीं थीं।

*हिन्दवी स्वराज के सूबेदार तानाजी मालुसरे बलिदान दिवस*
ब्यूरो चीफ एम के जोशी चित्तौड़गढ़
तानाजी का जन्म 17वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के कोंकण प्रान्त में महाड के पास 'उमरथ' में हुआ था। वे बचपन से छत्रपति शिवाजी के साथी थे। ताना और शिवा एक-दूसरे को बहुत अछी तरह से जानते थे। तानाजीराव, शिवाजी के साथ हर लड़ाई में शामिल होते थे। ऐसे ही एक बार शिवाजी महाराज की माताजी लाल महल से कोंडाना किले की ओर देख रहीं थीं।
तब शिवाजी ने उनके मन की बात पूछी तो जिजाऊ माता ने कहा कि इस किले पर लगा हरा झण्डा हमारे मन को उद्विग्न कर रहा है। उसके दूसरे दिन शिवाजी महाराज ने अपने राजसभा में सभी सैनिकों को बुलाया और पूछा कि कोंडाना किला जीतने के लिए कौन जायेगा? किसी भी अन्य सरदार और किलेदार को यह कार्य कर पाने का साहस नहीं हुआ किन्तु तानाजी ने चुनौती स्वीकार की और बोले, "मैं जीतकर लाऊंगा कोंडाना किला"। तानाजी ने बड़ी बहादुरी और चतुराई से यह किला जीता लेकिन यह युद्ध में उनका बलिदान हुआ। छत्रपति ने अपने बचपन के सखा और स्वराज्य के मजबूत शेर को खोया था। इस बलिदान को देख शेर शिवाजी की आँख से भी अश्रु रुक नहीं पाए थे।
छत्रपति ने इस अप्रतिम बलिदान के मान में कोंडाना का नाम सिंहगढ़ किया और कहा.... *“गढ़ आला पण सिंह गेला”*