मैं, देह से लड़की हूं, तो लोग मुझे, मेरी देह देखकर कहते हैं,  तूझे अपने घर जाना है! 

तो मैं पूछती हूं, अपना घर माने क्या?  तो लोग उत्तर देते हैं: सुसराल !  तो मैं पूछती हूं वहां अपना कौन रहता हैं?  तो उत्तर आता है, कोई नहीं !  फिर मैं कहती हूं, अगर अपना वहां कोई नहीं रहता तो क्यों जाना है? 

मैं, देह से लड़की हूं, तो लोग मुझे, मेरी देह देखकर कहते हैं,  तूझे अपने घर जाना है! 

मैं, देह से लड़की हूं,
तो लोग मुझे, मेरी देह देखकर कहते हैं, 
तूझे अपने घर जाना है! 


तो मैं पूछती हूं, अपना घर माने क्या? 
तो लोग उत्तर देते हैं: सुसराल ! 
तो मैं पूछती हूं वहां अपना कौन रहता हैं? 
तो उत्तर आता है, कोई नहीं !
 फिर मैं कहती हूं, अगर अपना वहां कोई नहीं रहता तो क्यों जाना है? 


फिर लोग कहते हैं ये हमारी रीति हैं तो मैं पूछती हूं!
ये रीति किस केंद्र पर आधारित हैं? 
तो लोग हों जाते हैं निरुत्तर, 
क्योंकि वे लोग नैतिकता से बंधे हैं, 
मान्यता के ढरो से बंधे हैं, प्रश्न पूछना नहीं जानते हैं,
 केवल मानना जानते हैं तब मैं बोल पड़ती हूं 
अच्छा ये रीति कामुकता के केंद्र से बनी है, 
और फिर वे लोग बोल उठते हैं कि ये लड़की बड़ी अशिष्ट हैं। 

(कुछ महिलाए पुरुष का भोलापन देखकर फंस जाती है बेचारी.. उन्हें लगभग सालभर बाद पता चलता है कि उनके भोलापन के पीछे कितना बड़ा राक्षस छुपा होता है।
ऐसे पुरुष जो महिलाओं को ठग लेते है उनको तो नर्क में भी जगह नहीं मिलनी चाहिए।।)

  कवियत्री - रिशिका मीणा