हिंदू के साथ ही जैन और बौद्ध धर्म में भी है चातुर्मास का खास महत्व : रविंद्र आर्या

शास्त्रीय विधान अनुसार जानिए, जैन धर्म में चातुर्मास की महत्ता* पंचांग के अनुसार, देवशयनी एकादशी के दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है और देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी के दिन चातुर्मास समाप्त हो जाता है. चातुर्मास की अवधि चार महीने की होती है, जिस कारण इसे चौमासा भी कहते हैं. इस साल चातुर्मास की शुरुआत गुरुवार 29 जून 2023 से हो रही है और गुरुवार 23 नवंबर 2023 को चातुर्मास समाप्त हो जाएगा. हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार, चातुर्मास में भगवान विष्णु पूरे चार माह तक क्षीरसागर में विश्राम करते हैं। इन चार महीने तक देव की अनुपस्थिति के कारण कोई भी शुभ मांगलिक कार्यों का आयोजन नहीं होता है। मान्यता है कि चातुर्मास की अवधि के दौरान किसी भी जीवन रूप को मारने से संतों को नुकसान हो सकता है। तदनुसार वे अपने आंदोलनों को प्रतिबंधित करते हैं। इस काल में भूमि शयन, ब्रह्म बेला में उठकर स्नानादि कार्य से निवृत हो ईश्वरभक्ति, वेदपाठ, भजन- कीर्तन, मौन व्रत पालन, एक समय भोजन आदि कार्य शुभ माने गये हैं। विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य पूर्णतः निषेध माने गये हैं। पौराणिक मान्यतानुसार चौमासा में किये गये शुभ कार्य का फल प्राप्त नहीं होता है। भारत में विभिन्न धर्मों के संत महात्माओं की अपनी-अपनी मान्यताओं और धार्मिक विधानों के अनुसार साधना पद्धतियां, अनुष्ठान और निष्ठाएं परिपक्व हुईं हैं। इन पद्धतियों में चातुर्मास की परम्परा बड़ी महत्वपूर्ण है। वैदिक परम्परा के संतों में भी चातुर्मास की परम्परा चली आ रही है परन्तु जैन धर्म में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। चातुर्मास का हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म में खासा महत्व है। तीनों ही धर्म के संत इसका कड़ाई से पालन करते हैं। हिन्दू धर्म के सभी बड़े त्यौहार इन्ही चौमासा के भीतर आते हैं. सभी अपनी मान्यतानुसार इन त्यौहारों को मनाते हैं एवं धार्मिक अनुष्ठान भी करते हैं। वैसे जैन धर्म में चातुर्मास के कई नियम और उपदेश हैं परंतु यहां प्रस्तुत है सामान्य महत्व की 5 बातें।   *जैन धर्म का चातुर्मास:* 1. चातुर्मास में सभी जैन संत अपनी यात्रा रोक देते हैं और मंदिर, आश्रम या संत निवास पर ही रहकर यम और नियम का पालन करते हैं। जैन धर्म के अनुसार यह चार माह व्रत, साधना और तप के रहते हैं। इस दौरान सख्‍त नियमों का पालन करना चाहिए। 2. जैन धर्म के अनुयायी इन चार माह में मंदिर जाकर धार्मिक अनुष्ठान, पूजा आदि करते हैं या सभी जैन धर्मी गुरुवरों एवं आचार्यों द्वारा सत्संग का लाभ प्राप्त करते हैं। संतों द्वारा मनुष्यों को सद्मार्ग दिखाया जाता हैं। यह हर तरह की जिज्ञासा और इच्छाओं को शांत करने के माह होते हैं और यही वह चार माह है जबकि धर्म को साधा या जाना जा सकता है। 3. जैन धर्म में आमजनों को इन चार माह में संयमपूर्वक करने का उपदेश है। उक्त चार माह में किसी भी प्रकार से क्रोध नहीं करते हैं और संयम का पालन करते हैं। इन 4 महीनों में व्यर्थ वार्तालाप, अनर्गल बातें, गुस्सा, ईर्ष्या, अभिमान जैसे भावनात्मक विकारों से बचने की कोशिश की जाती है।   4. चातुर्मास में सभी भौतिक सुख-सविधाओं का त्याग कर के संयमित जीवन बीताया जाता है। पंखा, कूलर और अन्य सुख-सुविधाओं के साधनों के साथ ही टीवी और मनोरंजन की चीजों से दूरी बना ली जाती है। इन 4 महीनों में सफाई और जीव हत्या से बचते हुए सिर्फ घर पर बना भोजन ही किया जाता है।  

हिंदू के साथ ही जैन और बौद्ध धर्म में भी है चातुर्मास का खास महत्व : रविंद्र आर्या

हिंदू के साथ ही जैन और बौद्ध धर्म में भी है चातुर्मास का खास महत्व : रविंद्र आर्या

*शास्त्रीय विधान अनुसार जानिए, जैन धर्म में चातुर्मास की महत्ता*

पंचांग के अनुसार, देवशयनी एकादशी के दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है और देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी के दिन चातुर्मास समाप्त हो जाता है. चातुर्मास की अवधि चार महीने की होती है, जिस कारण इसे चौमासा भी कहते हैं.

इस साल चातुर्मास की शुरुआत गुरुवार 29 जून 2023 से हो रही है और गुरुवार 23 नवंबर 2023 को चातुर्मास समाप्त हो जाएगा. हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार, चातुर्मास में भगवान विष्णु पूरे चार माह तक क्षीरसागर में विश्राम करते हैं। इन चार महीने तक देव की अनुपस्थिति के कारण कोई भी शुभ मांगलिक कार्यों का आयोजन नहीं होता है।

मान्यता है कि चातुर्मास की अवधि के दौरान किसी भी जीवन रूप को मारने से संतों को नुकसान हो सकता है। तदनुसार वे अपने आंदोलनों को प्रतिबंधित करते हैं। इस काल में भूमि शयन, ब्रह्म बेला में उठकर स्नानादि कार्य से निवृत हो ईश्वरभक्ति, वेदपाठ, भजन- कीर्तन, मौन व्रत पालन, एक समय भोजन आदि कार्य शुभ माने गये हैं। विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य पूर्णतः निषेध माने गये हैं। पौराणिक मान्यतानुसार चौमासा में किये गये शुभ कार्य का फल प्राप्त नहीं होता है।

भारत में विभिन्न धर्मों के संत महात्माओं की अपनी-अपनी मान्यताओं और धार्मिक विधानों के अनुसार साधना पद्धतियां, अनुष्ठान और निष्ठाएं परिपक्व हुईं हैं। इन पद्धतियों में चातुर्मास की परम्परा बड़ी महत्वपूर्ण है। वैदिक परम्परा के संतों में भी चातुर्मास की परम्परा चली आ रही है परन्तु जैन धर्म में इसका महत्वपूर्ण स्थान है।

चातुर्मास का हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म में खासा महत्व है। तीनों ही धर्म के संत इसका कड़ाई से पालन करते हैं। हिन्दू धर्म के सभी बड़े त्यौहार इन्ही चौमासा के भीतर आते हैं. सभी अपनी मान्यतानुसार इन त्यौहारों को मनाते हैं एवं धार्मिक अनुष्ठान भी करते हैं। वैसे जैन धर्म में चातुर्मास के कई नियम और उपदेश हैं परंतु यहां प्रस्तुत है सामान्य महत्व की 5 बातें।

 

*जैन धर्म का चातुर्मास:*

1. चातुर्मास में सभी जैन संत अपनी यात्रा रोक देते हैं और मंदिर, आश्रम या संत निवास पर ही रहकर यम और नियम का पालन करते हैं। जैन धर्म के अनुसार यह चार माह व्रत, साधना और तप के रहते हैं। इस दौरान सख्‍त नियमों का पालन करना चाहिए।

2. जैन धर्म के अनुयायी इन चार माह में मंदिर जाकर धार्मिक अनुष्ठान, पूजा आदि करते हैं या सभी जैन धर्मी गुरुवरों एवं आचार्यों द्वारा सत्संग का लाभ प्राप्त करते हैं। संतों द्वारा मनुष्यों को सद्मार्ग दिखाया जाता हैं। यह हर तरह की जिज्ञासा और इच्छाओं को शांत करने के माह होते हैं और यही वह चार माह है जबकि धर्म को साधा या जाना जा सकता है।

3. जैन धर्म में आमजनों को इन चार माह में संयमपूर्वक करने का उपदेश है। उक्त चार माह में किसी भी प्रकार से क्रोध नहीं करते हैं और संयम का पालन करते हैं। इन 4 महीनों में व्यर्थ वार्तालाप, अनर्गल बातें, गुस्सा, ईर्ष्या, अभिमान जैसे भावनात्मक विकारों से बचने की कोशिश की जाती है।

 

4. चातुर्मास में सभी भौतिक सुख-सविधाओं का त्याग कर के संयमित जीवन बीताया जाता है। पंखा, कूलर और अन्य सुख-सुविधाओं के साधनों के साथ ही टीवी और मनोरंजन की चीजों से दूरी बना ली जाती है। इन 4 महीनों में सफाई और जीव हत्या से बचते हुए सिर्फ घर पर बना भोजन ही किया जाता है।

 

 5. चातुर्मास में ही जैन धर्म का सबसे प्रमुख पर्व पर्युषण पर्व मनाया जाता है। यदि वर्षभर जो विशेष परंपरा, व्रत आदि का पालन नहीं कर पाते वे इन 8 दिनों के पर्युषण पर्व में रात्रि भोजन का त्याग, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, जप-तप मांगलिक प्रवचनों का लाभ तथा साधु-संतों की सेवा में संलिप्त रह कर जीवन सफल करने की मंगलकामना कर सकते हैं। चातुर्मास में महापर्व सम्वत्सरी भी आता है। यह चार माह व्यक्ति और समाज को एक सूत्र में पिरोने का भागीरथ प्रयास भी है।

*रविंद्र आर्य (सामाजिक कार्यकर्त्ता एवं लेखक)