आलस्य छोडिय़े, पूरुषार्थ कीजिए, भाग्य के द्वार जरूर खुलेंगे: संत चन्द्रप्रभ।
राष्ट्र-संत श्री चन्द्रप्रभ जी महाराज ने कहा है कि हमारे जीवन के विकास को अवरुद्ध करने में सबसे बड़ी भूमिका आलस्य की होती है। जीवन में सौ काम ऐसे हैं जिनके लिए आज हम सोचते हैं अगर उस समय ऐसा कर लिया होता तो हम और आगे होते, पर हमारे भीतर पलने वाला आलस्य सदा बाधक बन जाता है

आलस्य छोडिय़े, पूरुषार्थ कीजिए, भाग्य के द्वार जरूर खुलेंगे: संत चन्द्रप्रभ।
राष्ट्र-संत श्री चन्द्रप्रभ जी महाराज ने कहा है कि हमारे जीवन के विकास को अवरुद्ध करने में सबसे बड़ी भूमिका आलस्य की होती है। जीवन में सौ काम ऐसे हैं जिनके लिए आज हम सोचते हैं अगर उस समय ऐसा कर लिया होता तो हम और आगे होते, पर हमारे भीतर पलने वाला आलस्य सदा बाधक बन जाता है
। छोटी सोच और पांव में मोच, टूटी कलम और औरों से जलन, पैसे का लालच और काम में आलस ये हमारे प्रगति में हमेशा बाधक ही होते हैं। आलस्य तो पांव की वह बेड़ी है जो हर बार हमारे विकास में अवरोधक बनती हैं। दुकान में अगर ग्राहक नहीं आ रहा है तो बैठे-बैठे भाग्य को मत कोसते रहिए, आलस्य का त्याग कीजिए, चार कदम आगे बढि़ए और खुद ग्राहक तक पहुँच जाइए।
संत श्री संबोधि धाम में संबोधि ध्यान एवं योग शिविर के समापन पर आयोजित मंगल मैत्री महोत्सव में साधकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जहाज बंदरगाह पर रखने के लिए नहीं होते वे समुद्र में आगे बढऩे के लिए होते हैं। व्यापार हो या साधना आलस्य तो दोनों का ही शत्रु है। भगवान ने हमें हाथ, हाथ पर रखने के लिए नहीं दिए हैं और पाँव, पाँव पसार कर बैठने के लिए नहीं दिए है। ये सब हमें कर्मयोग करने के लिए दिए है। हमें अपनी ईच्छा शक्ति जगानी चाहिए और आगे बढऩे के लिए कदम बढ़ाने चाहिए। उन्होंने पुरुषों से कहा कि अगर अवकाश का दिन है तो घर में बैठकर केवल वोटस्एप और फेसबुक पर मत खोए रहिए, अपितु घर के छोटे-मोटे कार्यों को सम्पन्न करने में अपनी भागीदारी जरूर निभाइए। कमाने का मतलब यह नहीं की हम घर के काम काज न करें। साधुवाद है उन महिलाओं को जो जॉब भी करती हैं, बिजनेस भी करती है और अपने घर के कार्यों को जवाबदारी पूर्वक पूरा करती है।
राष्ट्र-संत ने कहा कि जीवन बड़ा बेशकिमती है। इसेे आलस्य में मत गवाँइये अपितु काम में लगाइए। चींटी से सीखए कि एक कण के लिए कितनी मेहनत करती हैं - पाँव छोटे हैं, पर हौंसला बड़ा है। उद्यम् और पुरुषार्थ से भरी जिंदगी जीना स्वर्ग है और आलसी बनकर समय को बर्बाद करना जीवन का नरक है। उन्होंने कहा कि दुनिया में कोई भी कार्य प्रयास और पुरुषार्थ से ही सिद्ध होता है। बिस्तर पर पड़े-पड़े सोचने से काम पूरा नहीं होता। अगर तैरना सीखना है तो पानी में हाथ पाँव तो चलाने ही होंगे। उन्होंने कहा कि किसी तरह की परेशानी आने पर आलस्य करने वाला बिखर जाता है और उद्यम करने वाला निखर जाता है। आलसी व्यक्ति को न विद्या मिलती है, धन मिलता है और न ही यश। हमें पाप कमाई से हमेशा बचना चाहिए। बाप कमाई से रोटी,कपड़ा और पढ़ाई की व्यवस्था करनी चाहिए इसके अलावा आप कमाई पर ही भरोसा रखना चाहिए।
संतश्री ने कहा कि कर्मयोगी व्यक्ति अगर चाय बेचने वाला हो तो भी प्रधानमंत्री बन जाता है, अखबार बेचने वाला राष्ट्रपति बन जाता है। बड़ी सोच के साथ किया गया कोई भी काम इंसान को सदा अच्छे परिणाम ही दिया करता है। उन्होंने कहा कि लेजीनेस को बाहर निकालना होगा और एक्टिवनेस की जिंदगी जीनी होगी। कल आगे वही बढ़ेगा जो आज अपना आलस छोड़ेगा।
आलस्य के मुख्य कारण बताते हुए संतप्रवर ने कहा कि अति भोजन आलस्य का मुख्य कारण है। हमें संयमित और संतुलित भोजन लेना चाहिए। नींद की कमी के प्रति हमें सावधान रहना चाहिए। नींद हमें विश्राम तो देती है पर साथ ही हमें चार्ज भी करती है। पर्याप्त नींद भी लेनी चाहिए। टालमटॉल की आदत छोडऩी चाहिए। छोटे काम को भी बड़ा मानना चाहिए। अपने टाइम-टेबल को भी सेट रखना चाहिए, सुर्योदय से पहले जगना चाहिए और एक्टिव जिंदगी जीनी चाहिए।
समारोह के अंत में पावर योगा के प्रयोग भी करवाए गए। पावर योगा करते हुए साधक भाई बहनों ने खूब आनंद लिया और तालियों की गड़-गड़ाहट के साथ संतप्रवर के प्रति आभार ज्ञापन करते हुए कहा कि योग से सारा आलस मिट गया और तन मन आनंद-उमंग से भर गया।