शुभ फल देने वाला भारतीय धार्मिक त्यौहार है अक्षय तृतीया  जैन धर्म का पारणा दिवस है अक्षय तृतीया

चित्तौड़गढ़ । भारतीय संस्कृति में वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का बड़ा महत्व है l इसे अक्षय तृतीया या आखातीज भी कहा जाता है l आदि काल से इस दिन की महता चली आ रही है l पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी कार्य किया जाता है उसका अक्षय फल मिलता है l इसलिए इसे अक्षय तृतीया कहते हैं

शुभ फल देने वाला भारतीय धार्मिक त्यौहार है अक्षय तृतीया      जैन धर्म का पारणा दिवस है अक्षय तृतीया

शुभ फल देने वाला भारतीय धार्मिक त्यौहार है अक्षय तृतीया 

जैन धर्म का पारणा दिवस है अक्षय तृतीया

भगवान आदिनाथ के व्रत का पारणा दिवस है अक्षय तृतीया

आदिकाल से हिंदू और जैन अनुयायियों का धार्मिक त्योहार है अक्षय तृतीया

चित्तौड़गढ़ । भारतीय संस्कृति में वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का बड़ा महत्व है l इसे अक्षय तृतीया या आखातीज भी कहा जाता है l आदि काल से इस दिन की महता चली आ रही है l पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी कार्य किया जाता है उसका अक्षय फल मिलता है l इसलिए इसे अक्षय तृतीया कहते हैं

l अक्षय तृतीया का दिन स्वयं सिद्ध मुहूर्त होता है l और इस दिन किसी भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश ,वाहन, जमीन ,आभूषण की खरीदारी आदि किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं होती l 

इस दिन सूर्य वह चंद्रमा अपनी उच्च राशि में रहते हैं l 

  जैन दर्शन में इसे श्रवण संस्कृति के साथ युग का प्रारंभ माना जाता है l जैन दर्शन के अनुसार भरत क्षेत्र में इस 

समय भोगभूमि का काल पूर्ण होकर कर्मभूमि का काल प्रारंभ हो गया था l भोगभूमि में दस कल्पवृक्ष होते थे l मनुष्य की सभी आवश्यकताओं को पूर्ण करते थे l मनुष्य को कोई काम नहीं करना पड़ता था l धीरे-धीरे काल के प्रभाव से यह कल्पवृक्ष लुप्त होते गए l और मनुष्य के सामने भूख प्यास ,गर्मी सर्दी ,और बीमारियों की समस्याएं आने लगी l एसे समय में राजा ऋषभदेव या भगवान आदिनाथ ने संसारी रहते हुए प्रजाजनों को असी , मसी, कृषि, विद्या,वाणिज्य,शिल्प, छह उपाय बताएं l इन्हें षटकर्म कहा गया l राजा ऋषभदेव ने प्रजा को योग एवं क्षेम के नियम ( नवीन वस्तु की प्राप्ति तथा प्राप्त वस्तु की रक्षा) बताएं l गन्ने के रस का उपयोग करना बताया l खेती के लिए बैल का प्रयोग करना सिखाया l इसीलिए ऋषभनाथ को वृषभनाथ , आदि पुरुष और और युग प्रवर्तक भी कहा जाता है l 

  एक बार जब महाराज ऋषभदेव के जन्मदिन का उत्सव मनाया जा रहा था l स्वर्ग की अप्सराएँ नृत्य कर रही थी l उनमें एक मुख्य अप्सरा नीलांजना नृत्य करते-करते मृत्यु को प्राप्त हो गई l क्योंकि उसकी आयु पूर्ण हो गई थी l यह देखकर राजा ऋषभदेव को वैराग्य हो गया l और उन्होंने अपने सबसे बड़े पुत्र भरत को राज्याभिषेक कर दीक्षा ले ली l 

  अयोध्या से दूर सिद्धार्थ नामक वन में पवित्रशिला पर विराजकर छह माह का मोन लेकर उपवास और तपस्या की l जब छह माह का ध्यान योग समाप्त हुआ तो वे आहार के लिए निकल पड़े l जैन दर्शन में श्रावको द्वारा मुनियों को आहार दान दिया जाता है l परंतु उस समय किसी को भी आहारचर्या का ज्ञान नहीं था l जिसके कारण सात माह तक उन्हें निराहार रहना पड़ा l भ्रमण करते हुए मुनि आदिनाथ वैशाख शुक्ल तीज के दिन हस्तिनापुर में पहुंचे l वहां का राजा सोमयश मुनि आदिनाथ का पौत्र था l राजा सोम और उनके पुत्र श्रेयांश कुमार ने रात्रि में एक सपना देखा जिससे उन्हें अपने पिछले भव के मुनि को आहार देने की चर्या का स्मरण हो आया l उन्होंने आदिनाथ को पहचान लिया और शुद्ध आहार के रूप में महाराज को प्रथम आहार गन्ने के रस का दिया l भगवान ने दोनों हाथों की अंजलि बनाकर खड़े रहकर उसमें गन्ने का रस इक्षारस का आहार लिया l और अपने व्रत का पारायण किया l इसे पारणा भी कहा जाता है l हस्तिनापुर में आज भी एक पारणा मंदिर बना हुआ है l मुनि श्री आदिनाथ ने लगभग 400 दिवस के पश्चात पारायण किया था l जो की एक वर्ष से भी अधिक की अवधि थी l इसे जैन धर्म में वर्षीतप के नाम से भी जाना जाता है l आज भी जैन अनुयायी वर्षीतप करते हैं l यह व्रत प्रतिवर्ष कार्तिक के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से प्रारंभ होता है l और दूसरे वर्ष वैशाख के शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया के दिन पारायण कर उसकी पूर्णता की जाती है l इस अवधि में पूरे वर्ष श्रावक प्रति मास चौदस को उपवास करता है l और उसके बाद उसका पारायण करता है l तभी से आज तक जैन मुनियों द्वारा खड़े होकर अपनी अंजलि में लेकर आहार करने की परंपरा चली आ रही है l वैशाख शुक्ल तृतीया के इसी दिन को अक्षय तृतीया कहते हैं l इस समय से ही आर्यखंड में आहार दान की प्रथा प्रारंभ हुई l भगवान की रिद्धि तथा तप के प्रभाव से राजा सोम की रसोई में भोजन कभी ना खत्म होने वाला अक्षय हो गया था l अतः तभी से इसे अक्षय तृतीया के नाम से भी जाना जाता है l तीर्थंकर मुनि को प्रथम आहार दान देने वाला अक्षय पुण्य का अधिकारी होता है l अतः इसे अक्षय तृतीया भी कहते हैं l 

    हमारे देश में आज भी जैन धर्म के हजारों अनुयाई वर्षी तपश्चार्य करते हैं l यह व्रत संयमी जीवन यापन करने के लिए , मन को शांत करते ,विचारों में शुद्धता और कर्मों में धार्मिक कार्यों में रुचि उत्पन्न करते हैं l मन ,वचन एवं श्रद्धा से वर्षीतप करने वालों को महान समझा जाता है l इसी कारण जैन धर्म में आज भी अक्षय तृतीया का विशेष धार्मिक महत्व है l

     हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार भी अक्षय तृतीया का बहुत महत्व है l और अनेकों व्रत कथाएं प्रचलित हैं l स्कंद पुराण और भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार लिया था l आज भी परशुराम की जयंती पूरे देश में बड़े धूमधाम से बनाई जाती है l हिंदू धर्म के अनुयाई अक्षय तृतीया के दिन गंगा में स्नान करके विधि पूर्वक देवी देवताओं विशेष रूप से भगवान विष्णु की विधि विधान से की पूजा करते हैं l और वस्तुएं ब्राह्मणों को दान में देते हैं l आज के दिन से ही हिंदुओं के मांगलिक कार्य लग्न आदि शुरू हो जाते हैं l बुंदेलखंड ,राजस्थान, मालवा आदि अलग-अलग प्रांतों में अक्षय तृतीया का उत्सव अलग-अलग लोक परंपरा के अनुसार बनाया जाता है l आज के दिन बसंत ऋतु का समापन और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ माना जाता है l पुराणों के अनुसार सत युग और त्रेता युग का आरंभ इसी तिथि से माना जाता है l और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था l द्वापर युग को भोगकाल और त्रेता युग को कर्मकाल भी समझा जा सकता है l इसी दिन बद्रीनाथ तीर्थ के कपाट खुलते हैं l वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी के मंदिर में बिहारी जी के चरणों के दर्शन होते हैं l अपने नाम के अनुरूप अक्षय तृतीया हमें अपने कर्मों के अनुसार अक्षय फल की प्राप्ति देती है l और यह आदिकाल से हिंदू और जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा मनाई जा रही है l य़ह प्राचीन भारतीय सनातन संस्कृति का एक धार्मिक त्योहार है l जो की ग्रहों की गति से संचालित होता है और हमें शुभ फल देता है l