अब मै तलाश रहा हूँ... एक चरित्रहीन औरत पर मै हैरान...हूँ...

निहाल दैनिक समाचार / NDNEWS24X7
रिपोर्ट देवी लाल बैरवा जयपुर
( कविता )
चरित्रहीन औरत.....????.
.................................
मैने माँ देखी,,, बेटी देखी,,,
बहन देखी,,, बिवी देखी,,,
प्रेमिका देखी....
और अब मै तलाश रहा हूँ...
एक चरित्रहीन औरत
पर मै हैरान...हूँ...
वो मुझे आज तक मिली नही..
ऐसा भी नहीं है कि
मैने उसे सही से तलाशा नही..
मै गया था .....
वहां..जिस और ...
धर्म दर्शन जाति और समाज
इशारा करते हैं .....
मै उन तमाम .....
औरतों के पास भी गया..!!
जो देह को लेकर
बाजार सजाती है ..!!
जो क्लबो में अर्धनग्न हो..
नाचती गाती है...!!
जो हर रोज वासना के
नये नये किरदार
सिर्फ पुरुषों के
इशाऱों पर निभाती है..!!
मैने वो तमाम औरते देखी...
पर मै हैरान हूँ.. !!
उनमें कही भी....
वो चरित्रहीन औरत नही दिखी है....
मै हैरान हुआ यह सब देखकर कि
कैसे लोग इन्हें चरित्रहीन कहते है,,,
हम एक तरफ कहते है औरत और मर्द को
कंधे से कंधा मिलाकर जीना चाहिए,,
और दुसरी तरफ हम ही लोग
औरत को इस तरह का दर्जा देते हैं,,,
क्या यह उचित है,,?
औरत को अपने मन सा जीने का कोई अधिकार नही,,
क्या उसका किसी और से प्यार करना गुनाह है,,?
क्या किसी के साथ सपने देखना,,,
खुश रहना,,
अपनी मर्जी से खुशियाँ चुनने का अधिकार नही है,,,
मै कहता हूँ,,, है....
यह उनका संविधान से मिला हक है,,,
अधिकार है....
जिसे हम जैसे पुरुष जो खुद को
समाज के ठेकेदार कहते है
इन्हें औरत को वो हक अदा करने में शर्म आती है
क्यों कि सदियों से यह लोग औरत को पैर की जूती समझते है,,,
मुझे एक बात बताओ
जो औरत क्लब में अर्धनग्न होकर नाचती है,,
वेश्या बनकर देह बेचती है,,
क्या वह अपनी खुशी से यह सब करती है,,, नहीँ.....
पर हां ... एैसी हर औरत के पीछे
एक पुरुष जरूर छिपा होता है..
जो रिश्तेदार बनकर,,
आशिक बनकर,,
पति बनकर,,
मिठी मिठी बातों में बहला फुसलाकर
कायर.. कामुक.. वासना की कीचड़ मे..
सर से पांव तक सना..!!
जो अपने शरीर की प्यास बुझाने,,,
चंद पैसो के खातिर औरत का
विश्वास चकनाचूर कर उसे एैसे
दलदल में डाल देता है....
हाँ....शायद यही है....वो..
पहला चरित्रहिन पुरुष
जी
जिसने शराफत& के चोले में
अपनी चरित्रहीनता छुपाकर,,
जिसने सबसे पहले
अपना सारा दोष औरत पर डालकर
औरत को चरित्रहीन कहा .
और औरत आज तक इन शब्दों से
खुद को उबार ना पाई है और
घुट घुट कर जीते हुए
अपने हक के लिये लड़ भी नही पाती है,,
और इन्ही पुरुषों के खातिर
अपने मन को मारकर
आखिर तक सिर्फ देह लेकर जीती है..
????????????
साभार प्रस्तुति....
डॉ.भैरों सिंह गुर्जर