दौसा में महात्मा ज्योतिबा फूले की जयंती मनाई

निहाल दैनिक समाचार / NDNEWS24X7
रिपोर्ट देवी लाल बैरवा जयपुर
दौसा l दिनांक 11 अप्रैल को डॉ. भीमराव अम्बेडकर जन सेवा सामाजिक समिति दौसा के तत्वाधान में जयन्ती का आयोजित किया जिसमें भागचन्द निकटपुरी ने महात्मा ज्योतिबा राव फुले की जीवनी पर अपने विचार रखें।महात्मा ज्योतिबा फूले का जन्म 1827 में पूना के एक माली परिवार में हुआ था । समाज के इस पिछड़े एवं दलित समझे जाने वाले परिवार में जन्मे ज्योतिबा मानव एवं मानव के बीच होने वाले अन्तर को देखकर अत्यन्त दुखी होते थे । वे एक ऐसे परिवार से थे, जहां पढ़ना-लिखना कोसों दूर की बात थी । इसके बावजूद भी फुले जी ने पढ़ाई की। 21 वर्ष की उम्र में उनका विवाह सावित्री बाई से कर दिया गया । सावित्री अनपढ़ थीं, लेकिन वह शिक्षा के महत्त्व को समझती थीं । अपने पति के हर सामाजिक कार्य में उनकी सक्रियता इसी बात को प्रदर्शित करती है ।
ज्योतिबा यह जानते थे कि देश व समाज की वास्तविक उन्नति तब तक नहीं हो सकती, जब तक देश का बच्चा-बच्चा जाति-पांति के बन्धनों से मुक्त नहीं हो पाता, साथ ही देश की नारियां समाज के प्रत्येक क्षेत्र में समान अधिकार नहीं पा लेतीं ।
उन्होंने तत्कालीन समय में भारतीय नवयुवकों का आवाहन किया कि वे देश, समाज, संस्कृति को सामाजिक बुराइयों तथा अशिक्षा से मुक्त करें और एक स्वस्थ, सुन्दर सुदृढ़ समाज का निर्माण करें । मनुष्य के लिए समाज सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है । इससे अच्छी ईश्वर सेवा कोई नहीं है । मानव-मानव के बीच का भेद उन्हें असहनीय लगता था ।
इस बुराई को दूर करने से पहले अपने बारे में सोचना भी पाप है, ऐसा संकल्प लेकर इसे पूरा करने में जुट गये । उनकी पत्नी सावित्री बाई ने उनके इस सामाजिक कार्य में पग-पग पर उनका साथ दिया । उन दोनों ने एक मिशनरी की स्थापना की, जिसका उद्देश्य सामाजिक समानता की भावना थी । उन दोनों ने पास-पड़ोस की कन्याओं को एकत्र कर एक कन्या शाला की शुरुआत की । ब्राह्मण वर्ग ने इसका जमकर विरोध किया । उन्हें जान से मारने की धमकियां दी जाने लगीं । उन्होंने नारी शिक्षा की आवश्यकता और उपयोगिता से सम्बन्धित अनेक भाषण दिये, लेख लिखे । इन सब बातों से मिले अन्तर्विरोधों एवं अपमान ने उन्हें यह अनुभव कराया कि धार्मिक अन्धविश्वासों से समाज को मुक्त कराना होगा । अत: उन्होंने एक ऐसे समानतावादी, सर्वसाधारण तक पहुंचने वाले ”सत्यशोधक” समाज की आधारशिला रखी, जिसका आधार विज्ञान था । उन्होंने ईश्वर की उपासना के लिए पुजारी की मध्यस्थता को अस्वीकार किया ।
निःसन्देह ज्योतिबा फूले ने उस समय धार्मिक रूढ़िवादिता से दूर एक ऐसे समाज की संकल्पना की थी, जो ज्ञान का प्रकाश दे सके । भेदभाव रहित समानतावादी सत्यशोधक समाज की स्थापना करने वाले तथा नारी शिक्षा को प्रोत्साहित करने वाले ज्योतिबा फूले का नाम अविस्मरणीय रहेगा । इस दौरान भागचन्द निकटपुरी, अशोक भेडोली, गोरधन लाल बैरवा, गिर्राज मौहलाई, सचिन निकटपुरी, गिर्राज, भेडोली, अरुण कुमार, कालुराम, रवि कुमार, भगवान सहाय भाण्डारेज आदि मौजुद रहे।