स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए प्रातः गो पूजा करें और सायं लक्ष्मी पूजा - दशरथानंद सरस्वती

स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए प्रातः गो पूजा करें और सायं लक्ष्मी पूजा - दशरथानंद सरस्वती

संवादाता बन्शीलाल धाकड़ राजपुरा 

 27 अक्टूबर 

दिपावली पर्व पर लक्ष्मी पूजन से पूर्व प्रातः विधिवत भारतीय गोमाता का पूजन करने से परिवार में सुख शांति और समृद्धि की वृद्धि होती है और लक्ष्मी जी का स्थाई निवास होता है। उक्त बात कहते हुए राष्ट्रीय गौसेवा संघ भारत के राष्ट्रीय गौकथा प्रवक्ता एवं प्रचारक दशरथानंद सरस्वती ने बताया कि गावो विश्वस्य मातर: अर्थात गाय विश्व की माता है यह बात प्रायः सभी जानते हैं लेकिन बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि गाय लक्ष्मी जी की बड़ी बहन यानि दीदी लगती। दशरथानंद सरस्वती ने पुराणों का उद्धरण देते हुए बताया कि जिस समय देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया उसमें चौदह रत्न निकले थे जिसमें लक्ष्मी जी और गोमाता भी है। लक्ष्मी जी के प्राकट्य से पहले कामधेनु गाय का प्राकट्य हुआ और दोनों समुद्र से प्रकट हुई इस नाते दोनों बहनें हुई एवं सुरभि पहले प्रकट हुई इसलिए यह बड़ी हुई। गायें ऋषियों को हव्य और कव्य के लिए प्रदान की गई। यदि गोमाता का हम सम्मान नहीं कर अनादर करते हैं तो लक्ष्मी जी कैसे प्रसन्न होंगी? कौन अपनी बड़ी बहन का अपमान सहन करेगा ? भविष्य पुराण में लिखा है पंच गाव: समुत्पन्ना मध्यमाने महोदधौ,तासां मध्ये तु या नन्दा तस्यै देव्यै नमो नमः। प्राचीन काल में क्षीरसागर के मंथन के समय पांच गायें उत्पन्न हुई नंदा सुभद्रा सुरभि सुशिला और बहुला ।इन गायों से हीं हव्य प्राप्त होता है जिससे देवता तृप्त होते हैं और उनका बल बढ़ता है और इनसे कव्य प्राप्त होता है जिससे पितृ तृप्त होकर हमें आशिर्वाद प्रदान करते हैं।जिन दंपत्तियों को संतान प्राप्त नहीं हो रही उनको गो सेवा कर अपने पित्रों को संतुष्ट करना चाहिए।गाय के प्राकट्य की अनेक कथाएं प्राप्त होती है उनमें मुख्य कारण यही है कि गोमाता का प्राकट्य सभी जीवात्माओं का भरण-पोषण करने एवं गोमाता से प्राप्त गव्य सामग्री द्वारा यज्ञ कर सभी देवताओं को तृप्त करना और प्रकृति मंडल को शुद्ध करना।साथ ही यह भी कहा कि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर नवमी पर्यंत गो नवरात्रि में गोमाता की विशेष पूजा अर्चना कर मनुष्य अपनी मनोकामनाएं पूर्ण कर सकता है। यदि विधिवत गो नवरात्रि में अनुष्ठान कर सुरभि महामंत्र का जप किया जाए तो निश्चित ही इच्छित फल प्राप्त होता है।इस बार यह गो नवरात्रि 2 नवंबर से 10 नवंबर तक रहेगी। प्रयास करने पर भी किसी कारणवश साक्षात पूजन के लिए गोमाता उपलब्ध नहीं हो तो अपने सामर्थ्य के अनुसार सोना चांदी अष्टधातु पितल इत्यादि धातु की प्रतिमा लाकर उसका पूजन करें और गो सेवा के निमित्त सामर्थ्य के अनुसार दान निकालें जिसे बाद में अपने नजदीकी किसी भी गोशाला में जाकर अर्पण कर दें।