ऊँटगिरी का किला - कल्याणपुर-करौली
क्षत्रिय सिरदारों आज मैं आपको उस किले की जानकारी प्राप्त कराना चाहता हूँ जिस दुर्ग के आस-पास कोई भी वस्ती की बसावट नहीं है। जंगली क्षेत्र को पार करके दुर्ग तक पहुंचना बड़ा दुष्कर व कठिन कार्य है। जंगली जानवरों का भी डर रहता है इस बजह से इस विशाल दुर्ग पर अधिक शोधकार्य भी नहीं हो पाया जिसकी बजह से इस दुर्ग के विषय में कम जानकारी है ।यह दुर्ग घने जंगल के बीच खड़ा है जो सिकंदर लोधी से राजपूतों के संघर्ष का गवाह है परंतु अब चंबल के डाकू शरण लिए हुए है । ऐतिहासिक शोध से पता चलता है कि इसमें करौली के यदुवंशी, जादौन राजपूतों का सिकन्दर लोदी से खूनी-संघर्ष बताया गया है ।उस किले का नाम ऊँटगिरी का किला है
ऊँटगिरी का किला - कल्याणपुर-करौली ????????
ब्यूरो प्रमुख एम के जोशी चित्तचौरगढ़
????????????क्षत्रिय सिरदारों मैं आपको उस किले की जानकारी आज प्राप्त करना चाहता हूँ जिस किले के आस-पास कोई भी वस्ती की बसावट नहीं है। जंगली क्षेत्र को पार करके चौकियों तक चौकियों और कठिन कार्य है। जंगली जानवर का भी डर रहता है इस बजह से इस विशाल किले पर अधिक शोध कार्य भी नहीं हो पाता है कि किसके बजह से इस किले के विषय में कम जानकारी है। लेकिन अब चंबल के पासवर्ड की शरण लिए हुए है । ऐतिहासिक खोज से पता चलता है कि इसमें करौली के यदुवंशी, जादौन राजपूतों का सिकंदर लोदी से सड़क-संघर्ष बताया गया है। उस किले का नाम ऊटगिरी का किला है।
जो राजस्थान राज्य के करौली जिले के कल्याणपुर के घने जंगलों में स्थित है। इस किले को मध्यकालीन राजपुत्रों के विशाल दुर्गों में माना जाता है, जो जंगल के बाहरी हिस्से में स्थित है।
???????? क्षत्रिय सिरदारों का किला करोली नगर से 40 किमी दक्षिण-पश्चिम में करणपुर के कल्याणपुरा गांव की प्रमुख पर्वत श्रृंखला की सुरंगनुमा पहाड़ी पर स्थित है जो किला तीन तरफ से गतिशील व सघन वन क्षेत्र से घिरा हुआ है। लगभग 4 कि.मी. की परिधि में पक्के परकोटे द्वारा बनाया गया है। इस किले में 100 फुट की ऊंचाई से नीचे शिवलिंगों पर पानी गिरता है। इस पानी में बड़ी मात्रा में शिलाजीत मिलता है। किले का नाम किसी शासक के नाम पर होने का कोई प्रमाण नहीं मिल रहा है। किले के नीचे झरने, तालाब और सतियों की खंडित छतरियां हैं। किले के चारों ओर उन्नत एवं सुद्रढ़ प्राचीर हैं। किले में जाने के लिए दो विशाल द्वारओर एक मोड़ कई भवनों, तालाब, में दुर्ग में इमलीवाला पोल का मुख्य द्वार है। मंदिर आदि है जो जीर्ण-शिर्ण हो चुके हैं। स्थानीय परिक्रमा के अनुसार इस किले का निर्माण लोधी जाति के द्वारा 1397 ईस्वी में बन गया था क्योकि इस जाति के लोग बीहड़ पहाड़ी चंबल किनारे वाले इस क्षेत्र पर लम्बे समय से ही कब्जा किए हुए थे । वे ही समय-समय पर यहां बांध और तालाब बनवाये और दुर्ग सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। लोधी जाति ने लगभग 400 वर्षों तक किले पर शासन किया था। 1506-07 ई. सिकंदर लोदी ने उस समय इस पर आक्रमण किया था और इसे किले की कब्र कहा था। अंतिम मुगल सल्तनत तक इस किले पर यदुवंशीयों का ही आधिपत्य रहा। किले के आस-पास कोई भी बस्ती का बसावट नहीं है। जंगली क्षेत्र को पार करके चौकियों तक चौकियों और कठिन कार्य है। जंगली जानवर भी इस बाघ से डरता है इस विशाल किले पर अधिक शोध कार्य भी नहीं पाया जाता है जिसके बजह से इस किले के विषय में कम जानकारी है,
???????? क्षत्रिय सिरदारों 1506 ई. दिसंबर माह में सुल्तान सिकंदर ने अपने विश्वसनीय लोगों के नेतृत्व में अवंतगढ़ या ऊट गिरी की किले के लिए सेना को डरा दिया। 'तबकाते अकबरी' के अनुसार ''सुल्तान ने जब किले पर आक्रमण किया तो घोर संघर्ष हुआ। इस युद्ध के समय एक स्थान पर किले में दरार पड़ गई जहां से मुस्लिम सेना किले में प्रविष्ट हो गई। शुरू में तो हिंदू वीरों ने युद्ध को रोकने की क्षमायाचना की, लेकिन जब उस क्षमा याचना का कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो सुल्तान की शाही सेना से आरपार का युद्ध लडऩे का फैसला हिंदू वीरों ने लिया। किले के भीतर हर स्थान पर मुस्लिम सेना के साथ वीरता के साथ युद्ध होने लगता। हिंदू वीरों ने अपने परिजनों को विशेषत: महिलाओं को उनकी अत्याचारों से बचाने के लिए अपनी तलवार से ही शुरू करना शुरू कर दिया। इस अनुपम बलिदान से जौहर की व्यवस्था कर ली गई बहुत से हिंदू ने मां भारती के लिए अपना अंतिम बलिदान दिया और शहीद-लड़ते वीरगति की प्राप्त की। यह किला मुस्लिम आधिपत्य में चला गया, ऐसा कोई शत्रु किले में जीवित नहीं था जो गुलामी की जंजीरों में बांधा जा सकता था। हिन्दुओं की यह वीरता ही तो इतिहास के रूप में दोहराई गई स्वर्णिम रचना है वैसे तो वूल्जले हेग जैसे इतिहासकारों का मत है कि सिकंदर अवंतगढ़ से आगरा के लिए मानसिंह के भय के कारण ऐसे रास्ते से लौटें कि जिसमें पानी का सर्वथा अभाव था। सिकंदर को डर था कि हिंदू गढ़ के परास्त होने के कारण कहीं मानसिंह उसके रास्ते में न आ जाए। इसलिए उसने जिस रास्ते का अनुभव किया उसमें सैकड़ों सैनिक बिना पानी के मर गए। यह भी एक तथ्य है जिसे इतिहास के निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए। पर दुर्भाग्य से यह घटना हमारे इतिहास में उल्लिखित नहीं की पुरानी हैतबकाते अकबरी' का वर्णन से स्पष्ट होता है कि अवन्तगढ़ का किला जीतकर सुल्तान सिकंदर लोदी ने हसन खां नामक मुस्लिम अधिकारियों को दे दिया था। यह हसन खां पूर्व में हिंदू रहा था, पर: धर्मांतरित मुस्लिम था। इसका पुराना नाम राय डूंगर था। मुस्लिम विवरणों के अनुसार ज्ञात होता है कि इस अधिकारी को यहां के हिंदुओं ने बहुत से कष्ट दिए थे। ये मुसीबत स्पष्ट: उन लोगों द्वारा यहां से विदेशी लोगों का शासन समाप्त कर देता है: अपना हिंदू ध्वजा फहराने के लिए तेजी से लड़ने वाले थे। इस प्रकार की साक्षियों से स्पष्ट होता है कि क्षेत्र अरुचि जो हो समय चाहे जो हो और घेष्य अरुचि जो माननीय स्वतंत्रता का संघर्ष निरंतर जारी रहा। वह उसी उपमा की तरह था जिसका उल्लेख पहले के अध्याय में सिकंदर के संबंध में किया गया था, जो-स्थान पर मुड़ा हुआ था और जिसे वह एक स्थान पर सीधा करता था तो वह दूसरे स्थान पर उठता था। इसके बाद भी धोखेदलपुर, मंडरॉयल, अवंतगढ़ और पयाया में गड़बड़ी हुई और 1509 तक उनकी स्थिति बनी रही, छोटे-दादा दुर्ग पर कब्जा कर लेते हैं या उन पर हमला करने में ही उसकी अधिकांश ऊर्जा का उपयोग हो जाता है। हालांकि इस समय किले के आस-पास कोई भी बसावट नहीं है। जंगली क्षेत्र को पार करके चौकियों तक चौकियों और कठिन कार्य है। जंगली पशु का भी डर रहता है इस बाघ से इस विशाल किले पर अधिक शोध कार्य भी नहीं मिलता है जिसके बजह से इस किले के विषय में कम जानकारी है।
????????????नोट - क्षत्रिय सिरदारों लेख खत में पूर्णतया सावधानी बरती है ।फिर भी अगर कुछ गलत लेखन भी दिया है तो क्षत्रिय समझकर क्षमा करें क्योंकि इतिहास के लेख में कहीं भी शुद्दीकरण नहीं है। कुछ न कुछ कमी रहती है। हमारा लेखन का माध्यम केवल आप लोगों तक प्राचीन मनदिर , किले के बारे में जानकारी देना है। कहां क्या लिखा है और कहीं कुछ लिखा हुवा है। इसके लिए उत्तरदायी हम नहीं हैं मैं उत्तरदायी नहीं हूं। फिर भी कुछ जगह पर गलत लिखा हुवा है तो हम आपसे जोक मांगते है। आप तर्क देकर उस लेख में सुधार कर सकते हैं। क्योंकि इस तरह से करने से लेख में एक तरह से सही जानकारी क्षत्रीय समाज को मिल जाती है। किसी को किसी के ऊपर या लक्ष्य का निर्धारण नहीं कर रहे हैं हर व्यक्ति शिक्षित नहीं होता कहिं न कहीं तो गलती ही हो जाती है।क्षत्रिय प्रमुखों अगर आपको इस लेख में सुधार करना है तो आप बेझिजक सुधार या संशोधन कर सकते हैं यदि आपको लेख में कुछ संदेह है तो आप भी लेखन में संशोधन कर सकते हैं ????
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