गाजरघास उन्मूलन जागरूकता सप्ताह का आयोजन

कृषि विज्ञान केन्द्र, चित्तौड़गढ़ द्वारा दिनांक 16-22 अगस्त, 2023 तक गाजरघास उन्मूलन जागरूकता सप्ताह के तहत कृषक एवं कृषक महिलाओ को खेतो के बीज /खाली जगह उगने वाली गाजरघास के उन्मूलन व इससे होने वाली बिमारियो के प्रति सचेत किया।

गाजरघास उन्मूलन जागरूकता सप्ताह का आयोजन

22 अगस्त

राम सिंह मीणा रघुनाथपुरा

कृषि विज्ञान केन्द्र, चित्तौड़गढ़ द्वारा दिनांक 16-22 अगस्त, 2023 तक गाजरघास उन्मूलन जागरूकता सप्ताह के तहत कृषक एवं कृषक महिलाओ को खेतो के बीज /खाली जगह उगने वाली गाजरघास के उन्मूलन व इससे होने वाली बिमारियो के प्रति सचेत किया।

कृषि विज्ञान केन्द्र, चित्तौड़गढ़ के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. रतन लाल सोलंकी ने बताया कि गाजरघास उन्मूलन सप्ताह मनाने का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण एवं शहरी समुदाय को गाजरघास से होने वाले रोग व स्वास्थ्य समस्याए तथा घरेलू स्तर पर गाजरघास को कम/हटाने सम्बन्धित तकनीकी जानकारी से अवगत कराना है। 

डॉ. सोलंकी ने बताया कि गाजरघास को कांग्रेस घास, चटक चांदनी, सफेद टोंपी इत्यादि नामो से भी जाना जाता है। इसका प्रवेश 1955 में अमेरिका से आयात गेहूं के साथ हुआ था, कम समय में ही गाजरघास पूरे देश में फैल गई। गाजरघास का पौधा 3-4 माह में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है, वर्ष भर उगता व फूलता-फलता रहता है। गाजरघास विभिन्न शाखनुमा पौधा होता है, जो एक पौधा में लगभग 5000-25000 सूक्ष्म बीज पैदा करता है। गाजरघास (पार्थेनियम) के जैविक नियंत्रण हेतु बायोएजेंट के रूप में मैक्सिकन बीटल (जाइगोग्रामा बाइकोलरेटा) को गाजरघास से ग्रसित स्थान पर छोड़ देना चाहिए। इसके अलावा रासायनिक नियंत्रण हेतु खरपतवारनाशी रसायन दवा एट्रीजीन, एलाक्लोर, डाइयुरान, मेट्रीब्यूजीन, 2-4 डी, ग्लाइफोसेट आदि मे से एक दवा का छिड़काव प्रभावी साबित होता है। 

केन्द्र की दीपा इन्दौरिया, कार्यक्रम सहायक ने बताया कि गाजरघास के लगातार सम्पर्क में रहने से विभिन्न प्रकार की त्वचीय एलर्जी, बुखार तथा अस्थमा जैसी भयानक बिमारियां होने की सभांवनाऐ रहती है। अतः बचाव हेतु गाजरघास के पौधे में फूल आने से पहले उखाड़कर जला देना चाहिए साथ ही पौधे को हाथ लगाने से पूर्व दस्ताने तथा मास्क का प्रयोग अनिवार्य है ताकि पौधे का कोई भी भाग शरीर के सम्पर्क में नही आ सके। इसके अलावा पशुधन को भी इस घास से दूर रखने का सम्भवतः प्रयास करें। इस खरपतवार में सेस्क्युटरपिन लेक्टौन नामक विषाक्त रसायन पाया जाता है जिसके कारण फसल उत्पादन में 30-40 प्रतिशत तक कमी आ जाती है। 

श्री संजय कुमार धाकड़, कार्यक्रम सहायक ने बताया कि गाजरघास का पौधा विभिन्न बिमारियो तथा जलवायु के प्रति उदासीन होता है। अतः यह किसी भी प्रकार की भूमि में आसानी से उग जाती है। नदी, नालो और सिंचाई के पानी के माध्यम से भी गाजरघास के सूक्ष्म बीज एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से पहुंच जाते है। गाजरघास की प्रतिस्पर्धी वनस्पति चकोड़ा हिपटीस जंगली चौलाई इत्यादि द्वारा गाजरघास को आसानी से विस्तापित किया जा सकता है।यह वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ रतनलाल जी सोलंकी ने दी