अब तो हिंसा और गरीबी, सड़कों पर दिख जाती है !  कैसी सत्ता है देश की ये, कुछ पैसों में बिक जाती है !! देखो कैसी भ्रष्ट सियासत, कितनी रिश्वत लेती है ! 

आँख छीन लेती है ये फिर, चश्मे दान में देती है !! बहती है खूब बर्फ की घाटी, बस नहीं पीर पिघलती है !  देखो ये सत्ता धर्म पंथ का, कैसा जहर उगलती है !!

अब तो हिंसा और गरीबी, सड़कों पर दिख जाती है !   कैसी सत्ता है देश की ये, कुछ पैसों में बिक जाती है !!     देखो कैसी भ्रष्ट सियासत, कितनी रिश्वत लेती है ! 

अब तो हिंसा और गरीबी, सड़कों पर दिख जाती है ! 

कैसी सत्ता है देश की ये, कुछ पैसों में बिक जाती है !!

देखो कैसी भ्रष्ट सियासत, कितनी रिश्वत लेती है ! 

आँख छीन लेती है ये फिर, चश्मे दान में देती है !!

बहती है खूब बर्फ की घाटी, बस नहीं पीर पिघलती है ! 

देखो ये सत्ता धर्म पंथ का, कैसा जहर उगलती है !!

नहीं व्यवस्था उतनी है, जितनी अब आबादी है! 

कितने खूंटों से बंधे हैं हम, और कहते कि आजादी है !!

देश के रक्षक में तो दिखता, देखो कितना जुनून है! 

पर वे भी कुछ न कर सकते, कैसा अंधा कानून है !!

बैठे हैं कितने दुखद युवा, और कितनी बेरोजगारी है!

 पर फिर भी सत्ता पर चड़ी हुई, देखो ये कैसी खुमारी है !!

आखिर जिए तो जनता कैसे अब, देखो कितनी मंहगाई है! फैली अशांति जन-जन में, पर सत्ता किंचित न शरमाई है !!

न बच्चों में शिक्षा पूरी, और नहीं सुरक्षित नारी है! 

फिर न भी दिखती सत्ता की, कुछ रंचमात्र तैयारी है !!

खुले में रोज होता चीर हरण स्त्री का बेबस खडे नजर आते है

भारत देश का अंधा कानून कोर्ट की बंद दिवारों में अपराधी आजाद नजर आता है 

खुलेआम बिकती मदिरा, और बन्द पड़े भगवान हैं! 

फिर भी कहते नेता सारे, की "मेरा देश महान" है !!

     रिशिका मीणा कोटा