हल्दीघाटी युद्ध का विहंगम दृश्य मुगलियों को 12 मील तक दौडा दौडा कर मारा प्रतापी प्रताप की प्रतापी सेना ने
|| हल्दी घाटी का दर्रा || जिसका मुख भी नहीं देख सकी थी अकबर की सेना 18 जून 1576 को यह है " हिन्दू विजय दिवस " बधाई

हल्दीघाटी युद्ध का विहंगम दृश्य
मुगलियों को 12 मील तक दौडा दौडा कर मारा प्रतापी प्रताप की प्रतापी सेना ने
|| हल्दी घाटी का दर्रा ||
जिसका मुख भी नहीं देख सकी थी अकबर की सेना 18 जून 1576 को
यह है " हिन्दू विजय दिवस "
बधाई
बनास नदी के बायें किनारे पर रुकी थी अकबर की सेना 17 जून 1576 को 'मोलेला' गांव के मैदान में
सायं तक मानसिंह मीलों तक निरीक्षण कर के आया था,
किधर कोई हलचल नहीं थी,
निरापद समझ कर अकबरी सेना नदी पार करके आगे बढ़ी 18 जून को.
अजमेर से लेकर मोलेला तक कहीं भी राणा की ओर से अवरोध नहीं आया. डर गया है वह. पहाड़ी चूहा है. किसी बिल में छिपा पड़ा होगा. यही चर्चा थी अकबरी सेना में.
इसलिए निर्भय निश्चिन्त आगे बढ़ी वह. लक्ष्य था कि प्रताप की राजधानी गोगुन्दा को घेरेंगे.
किन्तु मूंड मुंडाते ही ओले पड़ गए.
अकस्मात् न जाने किधर से तीर आने लगे,
किधर से पत्थरों की वर्षा होने लगी,
किधर किधर तलवारें खड़कने लगी,
कहीं भाले डकारने लगे,
हाथियों से हाथी भिड़ने लगे,
हल्दी घाटी के मुहाने से लेकर, शाहीबाग के पहाडों
और रक्त तलाई तक की पहाड़ियां व जंगलों में चार किलोमीटर तक छिपे हुए प्रतापी सैनिकों ने ऐसी भीषण मारकाट मचाई कि तोपों और बन्दूकों वाली मुगलिया सेना बारह मील तक भागती रही.
इतिहास में लिखा है कि महाराणा प्रताप ने अपनी सेना 'लोसिंग' में एकत्र की थी.
उन दिनों भारत में नियमित सेना नहीं होती थी,
लोगों को सूचना हो जाती थी और लोग अपने अपने सैनिक लेकर आ जाते थे.
सबको सूचना थी कि देश धर्म के युद्ध के लिए 17 जून तक लोसिंग में आ जाना.
प्रताप ने अकबर को छकाने की पूरी तैयारी की थी.
मुगल तो युद्ध के लिए तैयार ही नहीं थे.
उन्हें तो पता ही नहीं था कि सामने ही नहीं तो आजू बाजू में भी मौत तैयार खड़ी है.
प्रताप ने चिकित्सालय, शस्त्रागार, रिजर्व व आपूर्ति आदि की पूरी व्यवस्था की थी.
प्रताप की सेना रातोंरात 15 किलो मीटर चल कर हल्दी घाटी में आ गयी और रक्त तलाई तक के चार किलोमीटर क्षेत्र को घेर कर खड़ी हो गयी.
सेना तो आई जो आई,
धीरे धीरे चलने वाले हाथी भी दिन निकलने से पहले न जाने कहाँ से प्रकट हो गये !
मुगलिया सेना अल्ला हो अकबर चिल्लाते हुये आगे बढ़ी तो चार किलोमीटर तक चारों ओर से हिन्दू वीरों की ऐसी मार पड़ी कि तोपों को तैयार करना तो दूर बन्दूकों को भी छोड़ छोड़ कर अपनी जान बचा कर भागने में ही मुगलों ने अपनी भलाई समझी.
भागते भी किधर ?
चार किलोमीटर तक तो जिधर दौड़ते उधर मार पड़ती.
दौड़ा दौड़ा कर मारा मुगलियों को हल्दीघाटी में.
सैयद राजू को कूल्हे पर चाकू लगा तो
वह चिल्लाता हुआ भागा -
" भागो, जान है तो जहान है. "
हिन्दू वीर तो मातृभूमि को अपने प्राण चढ़ाने के लिए आये थे, मुगल दूसरे की भूमि को फोकट में हथियाने के लिए आये थे, अतः उनको तो भागना ही था. बनास नदी के पार बारह मील तक मुगलिये भागे तब उनकी जान में जान आयी.
चित्तौडगढ के अकबरी हत्याकांड का पूरा पूरा बदला लिया महाराणा प्रताप की सेना ने हल्दीघाटी में
छापामार युद्ध और विजय का श्रीगणेश था हल्दीघाटी का सुप्रसिद्ध युद्ध.
एकलिंगनाथ महाराज की जय
हिन्दुआ सूर्य की जय