बुजुर्गों की देखभाल ही हमारा सबसे बड़ा दायित्व, इनके मार्गदर्शन की करे पालना : लक्ष्मी सिन्हा

बुजुर्गों की देखभाल ही हमारा सबसे बड़ा दायित्व, इनके मार्गदर्शन की करे पालना : लक्ष्मी सिन्हा

निहाल दैनिक समाचार  / NDNEWS24X7

रिपोर्ट देवी लाल बैरवा जयपुर

पटना सिटी बिहार l राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश संगठन सचिव महिला प्रकोष्ठ श्रीमती सिन्हा ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को यह मालूम होना चाहिए कि आज वे जिन सुख-सुविधाओं को भोग रहे हैं, वे सुविधाएं आखिर किनकी देन है? चमक_दमक भर यह नया भारत पुराने भारत के ही खून_पसीने से बना है। ये पुराना भारत ही था, जो गड्ढों से भरी सिंगल रोड पर साइकिलों और स्कूटरों से अपना कर्तव्य किसी धर्म की तरह निभाने की मशक्कत करता था। बच्चों के भविष्य की खातिर पैसे बचाने के लिए वह अपने खर्चे कम करता था। अपने ऐसो_आराम पर विराम लगा कर 'नए भारत'के लिए किताबें, कंप्यूटर, और उपकरण जुटाता और महंगे स्कूल की फीस भरता था। यह धरती के नीचे छिपे उन्हें संघर्षों की नीव है, जिस पर नया भारत खड़ा है। हम अक्सर भारत के युवाओं की प्रशंसा करते हैं, लेकिन उतना ही अधिक हम बुजुर्ग भारत के बेहिसाब बलिदानों को अनदेखा करते हैं, जबकि उन्होंने ही वह बुनियादी संरचना बनाई, संस्थान स्थापित किए, परिवारों की परवरिश की, हमारे सबसे मुश्किल वक्त से लड़े और इसके बावजूद एक बेहतर भारत की उम्मीद नहीं छोड़ी। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि आज भारत में करीब 14 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनकी उम्र 60 वर्ष से अधिक है। वे ऐसे माता-पिता, दादा_दादी और नाना_नानी हैं, जिन्होंने इस देश के विकास की गति को बनाए रखा। 2031 तक यह संख्या लगभग 20 करोड हो जाएगी। यानी प्रत्येक सातवां भारतीय इन आयु वर्ग का हिस्सा होगी। ऐसे में हमें उनकी समस्याओं का अभी से समाधान करने की दिशा में सक्रिय होनी पड़ेगी। उनसे जुड़ी समस्याएं भी नाना प्रकार की है। प्रत्येक तीन में से दो बुजुर्ग किसी लंबी या असाध्य बीमारी से पीड़ित हैं। तीन में से एक अवसाद का शिकार है। प्रत्येक चार में से एक मामले में यही सामने आता है। कि उन्हें चलने_फिरने में परेशानी होती है। कभी-कभी वे घर में ही गिर जाते हैं। कई मामलों में तो इस कारण मौत तक हो जाती है। ऐसे में अब इस सच्चाई का सामना करने का वक्त आ गया है की न्यू इंडिया अपनी सोच_समझ और ऊर्जा का इस्तेमाल कर भारत को अपने अभिभावकों के अनुकूल बनाए। इसके लिए पांच सूत्रीय रणनीति खासी उपयोगी सिद्ध होगी सिन्हा ने कहा कि सबसे पहले, हमें यह समझना होगा की एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, बस स्टॉप, जैसी सर्वजनिक जगहों पर और घर जैसी निजी स्थानों पर बुजुर्गों के सामने कौन-कौन सी समस्याएं आती है। विशेषकर सर्वजनिक स्थलों का इस प्रकार आडिट करना होगा कि वे बुजुर्गों के कितने अंकुल है। दूसरा, अपनी मेडिकल और नर्सिंग शिक्षा में हमें बुजुर्गों की देखभाल को एक अलग विषय के रूप में प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इसमें मानसिक और भावनात्मक सहयोग के साथ बुढापे के प्रति सम्मान पर जोर देना भी आवश्यक है। बुजुर्गों के प्रति संवेदनशीलता उनकी देखभाल स्कूली स्तर से ही हमारी शिक्षा में शामिल होनी चाहिए। हमारी मूल प्राणाली बुजुर्गों के प्रति सम्मान के आधार पर बनाई गई थी और उसे हमारे स्कूलों, हमारी फिल्मों और साहित्य के जरिए फिर से मजबूती देनी होगी। स्मरण रहे की हमारे बुजुर्ग ही हमारी नींव है और उनकी भलाई, देखभाल और खुशी एक राष्ट्र के रूप में हमारा दायित्व है।