सरवाड़ किला - सरवाड़ (अजमेर ) ????????
क्षत्रिय सिरदारों आज मैं आपको उस किले की जानकारी प्राप्त कराना चाहता हूं जिस स्थान पर यह किला वर्तमान में बना हुआ है, उस स्थान के बारे में यह प्रचलित है कि यहाँ एक बकरी ने अपने बच्चों की पूरी रात सियार से टक्कर लेकर रक्षा की और जिस पर राजा बछराज गौड़ ने इसे वीरभूमि मान कर इसी स्थान पर किले का निर्माण कराया।
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???????? सरवाड़ किला - सरवाड़ (अजमेर ) ????????
????????????????क्षत्रिय सिरदारों आज मैं आपको उस किले की जानकारी प्राप्त कराना चाहता हूं जिस स्थान पर यह किला वर्तमान में बना हुआ है, उस स्थान के बारे में यह प्रचलित है कि यहाँ एक बकरी ने अपने बच्चों की पूरी रात सियार से टक्कर लेकर रक्षा की और जिस पर राजा बछराज गौड़ ने इसे वीरभूमि मान कर इसी स्थान पर किले का निर्माण कराया। पूर्व काल में यह किला बड़ा नहीं था, लेकिन गौड शासकों के बाद किशनगढ़ के राठौड़ वंशीय राजाओं ने इसे भव्य रूप प्रदान किया।रिसायत काल में राजा – महाराजाओं की अपनी शान-औ-शौकत हुआ करती थी एवम अपने अलग ही राजसी ठाठ-बाट हुआ करती थी, जिसका एक जीवंत उदाहरण सरवाड़ का ऐतिहासिक दुर्ग है , जिसे सरवाड़ का किला कहा जाता है
????????क्षत्रिय सिरदारों यह किला राजस्थान राज्य के अजमेर जिले में सरवाड़ कस्बे में स्थित यह किला है ।यह सरवाड, फतेहगढ़ रियासती काल में प्रमुख ठिकाने थे। मध्यकाल से पहले सरवाड का क्षेत्र गहन वन प्रदेश के रूप में था। मध्यकाल मेंआक्रमणकारियों से बचाव के लिए कस्बे के चारों ओर परकोटा बनाया गया, जिसमें जगह-जगह पर सैनिक चौकियाँ स्थापित की गयी। एक किंवदन्ती के अनुसार वर्तमान सरवाड़ को कालू मीर नामक व्यक्ति ने बसाया, इसीलिए आज भी लोग कालू मीर की सरवाड के नाम से जानते हैं। सरवाड़ के वर्तमान स्वरूप की बसावट का श्रेय गौड़ शासकों को जाता है, जो 800 साल पूर्व बंगाल से अजमेर आये थे। इतिहास से प्राप्त जानकारी के अनुसार संवत् 1205 में राजा बछराज जी गौड़ अपने भाई बावन जी गौड़ एवं अन्य भाइयों के साथ सरवाड़ क्षेत्र में आये और उन्होंने वर्तमान समय में सरवाड़, देवलिया एवं जूनियां में किलों का निर्माण करवाया और सरवाड़ को मुख्य केंद्र के रूप में चुना।
????????क्षत्रिय सिरदारों सरवाड़ का किला लगभग 51 बीघा भूमि पर फैला हुआ हैऔर उत्तर भारत के गिने-चुने किलों में इसका नाम दर्ज है। अपने निर्माण के समय यह अवश्य ही बड़ा आकर्षक एवं अभेद किला रहा होगा। यह किशनगढ़ रियासत की मराठा आक्रमणकारियों से रक्षा चौकी माना जाता था। किले की सुरक्षार्थ दोहरी चार दीवारी बनायी गयी है। जहाँ किले के चारों तरफ दो-दो नहरें बनी हुई हैं। सात- सात विशालकाय दरवाजों, हाकिम और नाजिर के महलों, विशाल तहखानों, तोपगाड़ियों, प्रत्येक बुर्ज परजंगी तोपों, अस्तबलों और भारी मात्रा में युद्ध सामग्री से युक्त यह किला पूर्णतया सामरिक दृष्टि से बनाया गया था। आगरे के किले की तर्ज पर यहाँ भी सम्पूर्ण किले में हजारों की संख्या में तीरकश एवं खंदक बने हुए है। इस किले को वर्तमान स्वरूप तक लाने का श्रेय किशनगढ़ के संस्थापक कृष्णसिंह जी के उत्तराधिकारी महाराज पृथ्वीराज सिंह जी की है, जिन्होंने किले के भीतर महलों सहित अन्य आवश्यक निर्माण कार्य कराए। किशनगढ़ रियासत में विलीन होने से पहले सरवाड़ गौड़ शासकों के अधीन होने के कारण गौड़ागटी कहलाती थी। रियासतकाल में सरवाड़ कस्बा परकोटे के भीतर सिमटा हुआ था।तीन मुख्य दरवाजे और एक खिड़की होने के कारण इसे परिहास में साढ़े तीन मुँह की सरवाड़ भी कहते हैंउत्तर में विजयद्वार है जो फतहगढ़ दरवाजा भी कहलाता हैयह द्वार मुख्य प्रवेश द्वार है। दक्षिण में सांपला दरवाजा, पश्चिम में खीरियाँ दरवाजा जिसे अजमेरी गेट के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर-पश्चिम में एक खिड़की जिसे कुम्हारों की खिड़की के नाम से पहचान मिली है।
???????? क्षत्रिय सिरदारों इस किले की मूल संरचनाएँ मेहराबदार है। मुख्य किले के प्रवेशद्वार पर सुरक्षा प्रहरियों के लिए सुन्दर मेहराबदार बरामदा बना है। मुख्य किले की दीवारों एवं बुर्जा को बाद के काल में ऊँचा किया गया है। इस दौरान किले के मेहराबदार कंगूरों की दीवार एवं तीन बुर्जा के ऊपरी हिस्से को सपाट किया गया है। तीन बुर्ज सुरक्षा प्रहरियों के लिए एवं चौथा बुर्ज महलनुमा रियाईशी महल बना हुआ है। महल के झरोखे सुन्दर एवं कलात्मक हैं। इन झरोखों के ऊपर अर्द्ध गुम्बद एवं नीचे अर्द्ध गुलदस्तेनुमा कलात्मक सुन्दर आकृतियाँ बनायी गयी हैं। किले के दरवाजे में प्रवेश एवं निकास सीधी रेखा में नहीं है। बल्कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से घुमावदार रखा गया है। मुख्य दरवाजों पर दोहरी सुरक्षा प्रणाली के अनुसार दरवाजे लगे हुए हैं। इस किले के भीतर शीश महल, महल के झरोखें, झरोखे के छज्जे एवं कलात्मक नक्काशी कार्य दर्शनीय हैं। इसी आधार पर इतिहास में प्रमाण मिलते है कि सरवाड़ को कोई भी शासक कभी भी जीत नहीं पाया और यह कस्बा सदैव अजेय रहा।
???????? क्षत्रिय सिरदारों इसके इतिहास की बात करे तो बहुत ही रोचक इतिहास है । कहा जाता है कि रिसायत काल में राजा – महाराजाओं की अपनी शान-औ-शौकत हुआ करती था एवम अपने अलग ही राजसी ठाठ-बाट हुआ करती थी, जिसका एक जीवंत उदाहरण यही दुर्ग है । वर्ष 1950 में रियासतों के एकीकरण होने के पूर्व राज्य की अनेक रियासतों का अपना-अपना रूतबा व मान-सम्मान था। इनमें किशनगढ़ रियासत प्रमुख रूप से थी, जिसका गौरवशाली अतीत आज भी वर्तमान पीढ़ी को आलोकित करता है । किशनगढ़ रियासत की एक प्रमुख हुकुमत थी सरवाड़ । जो किशनगढ़ की स्थापना के पूर्व से चली आ रही थी , लेकिन किशनगढ़ के राठौड़ वंशीय राजाओं ने गौड़ शासकों से छीनकर इसे अपने कब्जे में कर ली थी , और तब से ही सरवाड़ किशनगढ़ रियासत का प्रमुख हिस्सा हो गया ।सरवाड़ कस्बा किशनगढ़ रियासत की एक-एक घटना का तो जीवंत साक्षी रहा ही है,साथ ही इससे पूर्व गौड़ शासकों के उत्थान-पतन का नजारा भी इससे अपनी आँखों से देखा है।सरवाड़ की वर्तमान स्वरूप बसावट का श्रेय गौड़ शासको को जाता है , जो करीब 8 सौ साल पहले बंगाल से अजमेर आये थे ।उस समय अजमेर पर राजा पृथ्वीराज जी चौहान का शासन था । जानकारी के अनुसार संवत 1205 में राजा बछराजजी गौड़ अपने भाई बावन जी गौड़ व अपने अन्य पाँच भाईयों के साथ सरवाड़ क्षेत्र में आये और उन्होंने तात्कालीन समय में सरवाड़, देवलिया व जूनियां में किले बनवायें तथा प्रशासकीय रूप से सुविधा व साधन संपन्न होने पर सरवाड़ को मुख्य केंद्र बनाया । वर्तमान में जिस स्थान पर किला बना हुआ है, उस स्थान के बारे में ये धारणा प्रचलित है कि यहाँ एक बकरी ने अपने बच्चो की पूरी रात सियार से टक्कर लेकर रक्षा की, जिस पर रजा बछराज जी गौड़ ने इसे वीर-भूमि मानकर इस स्थान पर किले का निर्माण कराया । प्रारम्भ में यह काफी छोटा था,परन्तु बाद में गौड़ शासकों के बाद किशनगढ़ के राठौड़ वंशीय राजाओ ने इसमें काफी निर्माण कराकर इसे विशाल और भव्य स्वरूप प्रदान किया। सरवाड़ का यह किला लगभग 51 बीघा भूमि पर फैला हुआ है और उत्तर भारत के उन गिने चुने किलो में इसका नाम है जहाँ किले के चारों ओर दो-दो नहर बनी हुई है । साथ-साथ विशालकाय दरवाजे,हाकिम व नजीर के महलों, विशाल तहखानों, तोपगाडियों, प्रत्येक बुर्ज पर जंगी तोपों,अस्तबलों और भारी मात्रा में युद्ध सामग्री से युक्त यह किला पूर्णतया सामरिक रूप से बनाया था। आगरे के किले की तर्ज पर यहाँ भी पूरे किले में हजारो के संख्या में तीरकश व खंदक बने हुए है । इस किले को वर्तमान स्वरूप तक लाने में अहम भूमिका किशनगढ़ के संस्थापक महाराज कृष्णसिंह जी के 10 वें उत्तराधिकारी महाराजा पृथ्वीसिंहजी की है जिन्होंने किले के भीतर महलों सहित अन्य आवश्यक निर्माण करवायें ।किशनगढ़ रियासत में विलीन होने से पूर्व पूरा सरवाड़ परगना गौड़ शासकों के अधीन होने के कारण गौड़ापट्टी कहलाती थी। इसी कारण यहाँ जैन मंदिरों के साथ आज भी गौड़ी शब्द आगे लगता है,यथा गौड़ी पार्श्वनाथ ,गौड़ी आदिनाथ मंदिर इत्यादि। किशनगढ़ के अधीन होने के बाद सरवाड़ रियासत किशनगढ़ की प्रमुख हुकुमत बन गई ।ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार महाराजा किशनसिंह जी के बाद 18 अन्य महाराजाओ ने यहाँ शासन किया । महाराजा किशनसिंह जी की मृत्यु के बाद उनका बड़ा पुत्र सह्समल्ल जी यहाँ की गद्दी पर बैठा।कुछ समय बाद फतहगढ़ के महाराजा बाघसिंह जी के तीसरे बेटे भीमसिंह जी जो कचौलिया के जागीरदार थे ,के छोटे पुत्र पृथ्वीसिंह जी को रियासत का राजा बनाया गया । इनके शासन में रियासत ने काफी तरक्की की । उस समय पूरी रियासत में छोटे-बड़े क़रीब 30 तालाब बनाये गए ।इनकी मृत्यु के बाद इनके पुत्र शार्दुलसिंहजी की ताजपोशी की गई ,जिनके बाद मदनसिंह जी ने संवत 1957 से 1983 तक राजपाट संभाला । उसके बाद यज्ञनारायण सिंहजी व सुमेरसिंहजी अंतिम शासक रहे । किशनगढ़ रियासत में आने से पूर्व यहा तक कि गौड़ शासकों के भी पहले से सरवाड़ पर मुस्लिम शासको की नजर रही और समय-समय पर यहाँ आक्रमण भी हुए। 1197 में अजमेर में मेर जाति के दमन के लिए जब मुस्लिम शासक कुतुबद्दीन एबक ने आक्रमण किया तब उसने सरवाड़ के प्रसिद्ध आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर को काफी क्षति पहुंचाई । इसके पश्चात 1627 में पुन:मुस्लिम शासकों ने यहाँ हमला बोला , पर यहाँ के वीरो ने अपनी जान बाजी पर लगा दी और सरवाड़ की रक्षा की ।इसलिए आज भी उनकी शौर्यगाथा जनकंठो का हार बनी हुयी गूंजती है।
पाथल पड़ पीथल पड्यो,अध बीच पद्यो ओनाड़ ।
सीत सारे नही राजा, सर कट्या रही सरवाड़ ।।
पाथल,पीथल और ओनाड़ ये तीनों सगे भाई थे, जिन्होंने युद्ध में अपना रणकौशल दिखाते हुए वीर गति पाई लेकिन सिर कटने के बाद भी इनके धड़ लड़ते रहे, जिससे ये जुन्झार जी कहलाये । इन तीनो के स्थान आज भी किले के चौक में जीर्ण -शीर्ण हालत में बने हुए है।
???????? क्षत्रिय सिरदारों अंत मे आपको यही कहूंगा कि बीतेकई दशकों से उपेक्षा के चलते जर्जर हो रहे राठौड़ वंशीय किले की आखिर पर्यटन विभाग ने सुध ले ली। सरवाड़ में राठौड़ वंशीय किला बीते कुछ दशकों से विभागीय उपेक्षा से लगातार जर्जर अवस्था में जा रहा है।इसे लेकर विभाग की ओर से किले की सुरक्षा और संवर्धन के लिए स्वीकृत करीब 73 लाख रुपए की राशि से मरम्मत रंग-रोगन का कार्य किया जा रहा है। किसी जमाने में राजे रजवाड़ों के राज में क्षेत्र की शानो शौकत बयां करने वाले वैभवशाली किले की बिखरती धरोहर को पुन: रंग रोगन से तराशने का काम शुरू होने से लोगों में खुशी है। माना जाता है कि किसी जमाने में राजे-रजवाड़ों की जिंदगी को बेहद करीब से देख चुके शहर के वैभवशाली और जंगी किले की खोई हुई रौनक लौटने की उम्मीद जगी है। विभाग ने इतिहास के पन्नों में धुंधला चुके एेतिहासिक किले की खोई प्रतिष्ठा लौटाने का बीड़ा उठाया है। देखरेख के अभाव में किले को असामाजिक तत्वाें ने इतना नुकसान पहुंचाया है जिसकी भरपाई के बाद भी शायद ही किले को फिर वह रंगत मिल पाए। किले के दरवाजे और महल भी देखरेख के अभाव में खण्डहर में तब्दील हो चुके हैं। दीवारों, बंकरों, कमरों, रानी के महल, गुप्त दरवाजे जर्जर अवस्था में पहुंच चुके हैं। लोगों ने किले के बेहद मजबूत, जंगी, खूबसूरत और इतिहास के साक्षी दरवाजों को जलाकर उनमें से लोहे के भालों को निकालकर ले गए हैं। किले से अब-तक तोप, लोहे के गोले, बेशकीमती सामान चोरी हो चुके हैं, लेकिन अब पुरातत्व विभाग की ओर से काम शुरू होने से लोगों की खोई उम्मीदें एक बार फिर ताजा हो गई हैं। किले के दरवाजों नहरों की मरम्मत कर पुराना लुक देने का काम जोरों पर चला है। दरवाजों को रंग-रोशन करके तैयार किया जा रहा है। जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंचे किले की मरम्मत कर रहे ठेकेदार ने बताया कि किले के दरवाजों और चरमराकर गिर चुकी दीवारों को वापस दुरुस्त कर राजसी अवस्था में लाया जा रहा है
✍️ शिव सिंह भुरटिया