ऐसी सोच वाले पुरूषों से चिढ़ होती है....लेकिन वो यह भूल जाते हैं कि यही बात एक दिन उनकी बहन बेटी पर भी एक दिन जरूर आयेगी
तब समझ आयेगी इसकी असलियत ...ये वही औरतें होती हैं जो जिन्दा लाश बनकर जीती मिलती हैं या फिर कभी फंदों में लटकी हुई.. कभी अपनी 1-2 पीढ़ी ऊपर की औरतों से पुछो..कितना ज्यादा मानसिक शारिरिक शोषण हुआ है

ऐसी सोच वाले पुरूषों से चिढ़ होती है........
सामन्यतः ऐसी पोस्ट्स वो अपने पत्नी से पीड़ित होकर कहते होंगे...लेकिन जब मां इस व्यथा से पिड़ीत रहती है तब मां के लिऐ सहानुभूति प्रकट करते हैं....क्यूंकि वह सहते हुए जीवन व्यतीत की होती हैंऔर सहन कराने वाले उसका परिवार...
क्यूंकि वे अपनी पत्नी को पूर्णतः दबाकर रखना चाहते हैं...बहन या बेटी से ऐसी अपेक्षा उम्मीद नहीं करेंगें कभी
लेकिन वो यह भूल जाते हैं कि यही बात एक दिन उनकी बहन बेटी पर भी एक दिन जरूर आयेगी...
ठीक है इसका एक पहलू अगर सोचें भी तो .....
सत्य है अनपढ़ औरते घर बसाती हैं...पर कभी ऐसी औरतों के पास जाकर बैठो,देखो,सुनो, ....
तब समझ आयेगी इसकी असलियत ...ये वही औरतें होती हैं जो जिन्दा लाश बनकर जीती मिलती हैं या फिर कभी फंदों में लटकी हुई..
कभी अपनी 1-2 पीढ़ी ऊपर की औरतों से पुछो..कितना ज्यादा मानसिक शारिरिक शोषण हुआ है वो भी सिर्फ पति से नहीं पुरे परिवार के सदस्यों से....कभी उन्हें लाठियों से पीटा गया तो कभी उसके मायके वालो को भिखारी कहकर ऊसके मन को छलनी किया गया...क्या ये सब बातें तुम्हें नहीं दिखती....??
और तुम्हे पता है वो सही भी हैं ये सब किस लिऐ????बस पेटभर खाने,तनभर कपड़े,और 1छत की आश में????
क्या ये सब चीजें उन्हे मायके में नहीं मिलती थी????
दिखेगी भी कैसे क्यूंकि ईश्वर का वरदान लेकर जो पैदा हुऐ हो पुरूष बनकर तो इतना घमण्ड तो होना बनता ही हैं....भाई!
जब एक औरत को उसका पति 4 लोगों के सामने पीटता है और वह सह लेती है तब पति,घर ,समाज सब बहुत खुश दिखते मिलते हैं....
लेकिन जब वही पत्नी 10 थप्पड़ का जवाब 1 थप्पड़ से दे देती है तब उसे पत्नीधर्म का हवाला देकर कितना गिराया और पति को ऊकसाया जाता है कि एक औरत से तू मार खा गया ..कितने शर्म की बात है..जबकि पत्नी सिर्फ अपनी आत्मरक्षा के लिऐ ऐसा कदम उठाती है.....
कुछ तो शर्म करो....औरते सहती थीं सहती हैं और आगे सहती हुई भी मिलेंगीं....
लेकिन उनसे उतना ही सहने की उम्मीद रखों जिसमें उसका खुद का थोड़ा वजूद जिन्दा रहे....
और अगर औरतों का कोर्ट कचहरी पढ़ना लिखना इतना ही नागवार लगता है तो...
हे पुरूषों
आज से अभी से अपनी बहन बेटी को पढ़ाना लिखाना जागरूक होना बंद कर दो....और उनका मुंह सुई से सिलकर ससुराल भेजना... हो सके तो ससुराल भेजना ही मत
और ये कभी मत कहना की तुम्हारे साथ अत्याचार हो तो लड़ना मत...भले फंदे पर लटक जाना
तभी तो ये समाज स्त्री को आदर्श नारी की उपाधि देगा....??
समाज में औरतें भी गलत हैं और पुरूष भी....
किसी इक्का दुक्की घटनाओं से प्रेरित होकर सबके लिए वही धारणा बना लेना मैं समझदारी नहीं बेवकूफी समझती हूँ ....ऐसी जगह अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग करें....ना कि भेड़चाल में आंख बंद करके चलें....
स्त्री को दबाने के चक्कर में आपकी भी बेटियों का भविष्य अंधकारमय हैं..और पुरूष को भी ज्यादा दबाने के चक्कर में आपके बेटों का भी....
वरना दुनिया गोल क्यूं है सब समझ आ जाऐगा
पोस्ट किसी भी एक वर्ग की भावनाओं को आहत करने के लिए नहीं वरन एक दुसरे को समझने हेतु है
ऋषिका मीणा (कोटा राजस्थान )