मजदूर सड़क पर नंगे पांव, काम कर रहा था बेचारा

निहाल दैनिक समाचार / NDNEWS24X7
रिपोर्ट देवी लाल बैरवा जयपुर
( कविता )
।।बेचारा मजदूर।।
चिलचिलाती धूप में ,
देखा मैंने एक नजारा ।
मजदूर सड़क पर नंगे पांव ,
काम कर रहा था बेचारा ।।
सड़क किनारे एक अट्टालिका,
भव्य विशाल और आलीशान।
निर्माण करने को वह मजदूर,
मजबूर था या फिर परेशान।।
पांव में कोई चप्पल नहीं थी,
न तन था पूरा ढका।
पत्थर उठा रहा था वह,
भूखा प्यासा और थका।।
तभी एक चमचमाती कार में,
उतरा एक श्वेतवस्त्र धारी।
चेहरा उसका चमक रहा,
जटायें बड़ी थी भारी।
उसने कर्कश वाणी से,
मजदूर को आवाज लगाई।
दो कौड़ी का इंसान कह,
औकात उसको याद दिलाई।।
सर पर थे जो पत्थर भारी ,
धड़ाम से नीचे सारे आये।
टूट कर वो बिखर गए,
मजदूर के प्राणों पर बन आये।।
पत्थर की कीमत लाखों में,
मजदूर दो कौड़ी का था।
मैंने वह नजारा देखा ,
समय हाथा-जोड़ी का था।।
यह वही समतामय समाज था?
गांधी के सपनों का समाज।
पर अब भी विश्वास है मुझे ,
कभी तो आएगा रामराज।।
प्रस्तुतकर्ता
सुंदरलाल
उप निरीक्षक
राजस्थान पुलिस