बारिश आने से चेहरे खिल जाते है

*कविता-बारिश*
चेहरे खिलते तेरे आने से
अन्नदाता के, आम आदमी के,
अमीर के, गरीब के, सभी के।
पर बारिश के साथ बहुत बड़ी दुविधा है,
अधिक बरसे तो ताने देते,
कम बरसे तो भी लताड़ देते,
और नहीं बरसे तो दिन-रात कोसते हैं। बिचारी बारिश क्या करें ?
यह भी हम पर निर्भर रहती हैं।
प्रकृति का अंग है बारिश,
जिसकी आवश्यकता हर जीव-जंतु को है।
यह बहुत जरूरी है जीवन जीने के लिए,
रोजगार के लिए, पेट के लिए।
प्रार्थना है बारिश से "राज" की कि इतना बरस तू अब के वर्ष,जिससे हर जीव-जंतु, इंसान का गुजारा हो सके।
अतिवृष्टि और अनावृष्टि का समायोजन तो ईश्वर के हाथ होता है।
तू खूब बरस अब के वर्ष....।।
©®
*कवि कृष्ण कुमार सैनी "राज" दौसा,राजस्थान मो.- 9785523855*