14 वर्षों में 11.7 करोड़ मौतें, लेकिन UIDAI ने सिर्फ 1.15 करोड़ आधार किए निष्क्रिय: RTI से बड़ा खुलासा

नई दिल्ली।
एक आरटीआई (सूचना के अधिकार) के तहत सामने आए चौंकाने वाले आंकड़ों ने आधार डेटा की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आधार जारी करने वाली संस्था भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) ने स्वीकार किया है कि पिछले 14 वर्षों में उसने केवल 1.15 करोड़ आधार नंबर ही निष्क्रिय किए हैं, जबकि इसी अवधि में देश में लगभग 11.7 करोड़ लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
इस स्पष्ट असंतुलन ने यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या करोड़ों मृत लोगों के आधार नंबर अब भी सिस्टम में सक्रिय हैं?
क्या है चिंता का विषय?
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि मृत व्यक्तियों के आधार नंबर निष्क्रिय नहीं किए जाते, तो इससे सरकारी योजनाओं में घोटाले, फर्जी लाभार्थी, और आर्थिक अनियमितताओं की संभावना बढ़ जाती है।
आधार नंबर आज कई सरकारी व निजी सेवाओं जैसे बैंक खाता, पेंशन, सब्सिडी, और वोटर पहचान से जुड़ा है। ऐसे में मृत व्यक्ति के नाम पर सेवाओं का उपयोग किया जाना एक गंभीर सुरक्षा चूक मानी जाएगी।
क्या है कारण?
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UIDAI के पास नागरिकों की मृत्यु की सीधी सूचना प्रणाली नहीं है।
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भारत में अभी भी मृत्यु पंजीकरण प्रणाली पूरी तरह डिजिटल और सार्वभौमिक नहीं हो पाई है।
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कोई कानूनी बाध्यता नहीं है कि परिजन UIDAI को मृत्यु की सूचना दें।
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राज्य सरकारों के मृत्यु रजिस्ट्रेशन डेटाबेस और UIDAI के डेटाबेस के बीच कोई समन्वय नहीं है।
क्या हो सकते हैं समाधान?
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डिजिटल मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने की व्यवस्था और उसका UIDAI से समन्वय।
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आधार निष्क्रिय करने के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल या सरल प्रक्रिया।
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मृत्यु के बाद आधार निष्क्रिय करना परिवार के सदस्यों की कानूनी जिम्मेदारी बनाना।
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UIDAI और स्वास्थ्य/गृह मंत्रालय के बीच डेटा इंटीग्रेशन।
निष्कर्ष:
यह मामला केवल आंकड़ों का नहीं, बल्कि देश की डिजिटल पहचान प्रणाली की साख और पारदर्शिता का है। यदि UIDAI को भरोसेमंद और अद्यतन रखना है, तो आधार से जुड़े मृत्यु डाटा को समय पर अपडेट करना अब नीति निर्माताओं की प्राथमिकता बनना चाहिए।