उपन्यास सिसोदिया राजवंशी का दारोगा

।।समीक्षा।।
।।उपन्यास सिसोदिया राजवंशी का दारोगा ।।
।।लेखक सुंदर लाल मंजू।।
साहित्यागार प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उपन्यास सिसोदिया राजवंशी का दारोगा कोरोना काल की भयंकर त्रासदी के दौरान देश , परिवार ,समाज और प्रत्येक व्यक्ति के साथ घटित घटनाओं के साथ साथ भावनाओं ,संवेदनाओं ,संस्कारों ,एवम् रिश्तों की वास्तविकताओं को तो उजागर करता ही है साथ ही पुलिस ,प्रशासन ,डॉक्टर ,सफाई कर्मी एवम् आम आदमी के सकारात्मक एवम् नकारात्मक पहलुओं को दर्शाते हुए एक चल चित्र को नजरों के सामने इस तरह प्रस्तुत करता है जैसे एक बार फिर उस भयंकर त्रासदी में जीवन जिया जा रहा हो। यह उपन्यास जहां पुलिस के मानवीय पहलू को उजागर करता है वही वर्ग विशेष सफाई कर्मियों की समाज में महत्ता को प्रकट करता है। उपन्यास की प्रारंभ से अंत तक की तारतम्यता एवम् रोचकता पाठक को लगातार जोड़े रखने में सफल रही है ।एक एक पात्र ,घटना ,कार्य जो पात्रों द्वारा किए जा रहे है वह एक वास्तविक दुनिया की तरफ वापस ले जाते है जो हमने दो वर्ष पूर्व महसूस किए थे , साथ ही पुलिस के निस्वार्थ मानव सेवा हेतु किए गए कार्यों का सचित्र चित्रण पाठकों को पुलिस के प्रति एक नया दृष्टिकोण विकसित करने में सफल रहा है । कोराेना काल में हर स्तर पर जहां संस्कार ,रिश्ते ,विश्वास सब टूटते बिखरते नजर आये उसकी वास्तविक अभिव्यक्ति भी इसमें निष्पक्ष रूप से की गई है जो हमे सोचने पर मजबूर करता है की आधुनिक समाज किधर जा रहा है और इसके लिए उपन्यासकार ने मृतकों की आत्माओं के माध्यम से दारोगा का संवाद स्थापित कर कथानक को रोचक रूप से पाठक के सामने प्रस्तुत किया है तथा रिश्तो में आई गिरावट का मार्मिक वर्णन कर समाज को संदेश देने का सार्थक प्रयास किया है।
प्रकृति ,प्रदूषण ,शांति , परिवार की महत्ता , श्रमिक वर्ग की मजबूरी ,रोजगार हेतु संकट ऐसे विचारवान तथ्यों का समावेश कर एक गंभीर चिंतन को दर्शाने का एक सार्थक प्रयास किया गया है। उपन्यास में मजदूरों की पीड़ा का जो मार्मिक वर्णन है वह पाठक को झकझोरने में सफल रहा है।
वहीं समाज के भामाशाहों द्वारा गरीब वंचित ,श्रमिक समूह को समय पर खाना , दवाई ,आश्रय देना आदि का एक सजीव चित्रण मानवता की बची निशानियों का अहसास कराता है।
संकट काल में हर व्यक्ति की संघर्ष की स्थिति और एक दूसरे को प्रेरित कर जंग लड़ने की स्थितियों की कविताओं के माध्यम से प्रस्तुति उपन्यासकार का एक अलग अंदाज दर्शाता है।
वहीं खत के माध्यम से प्रेम का इजहार एक बार पुनः शब्दों की शक्ति और तकनीक से मुक्ति की और इशारा करता है ,
अंत में कोरोना की दूसरी लहर और गिरते मानवीय मूल्य सभी को सोचने विचार करने को मजबूर करते हैं तथा वापस प्रकृति की ओर लोट चलने का आह्वान करते हैं।
सीमा हिंगोनिया
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक
राजस्थान पुलिस